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________________ पद्रिका टीका उमीसको बीसवो गक एक दिन ये दोनों रात्रि समय नित्यमण्डित नामक चैत्यालय में पहुंचे जब कि वर धर्मा.. चार्यका उपदेश हो रहा था । यह देखकर विश्वानुलोम योला—“धन्वन्तरे ! यदि मद्यपानादिके द्वारा संसारका मुख भोगना है मो इन दिगम्बरोंकी वाण नही सुनना" यह कहकर वह तो कान बन्दकर चला गया और एक जगह जाकर सांगया। किंतु धन्वन्तरि ने उसके कहनेपर ध्या र नहीं दिया और उपदेश सुनता रहा। प्रसंगवश धर्माचार्य ने कहा कि "यदि दृढता के साथ एकभी वचन का पालन किया जाय तो परिपाकम बही स्वर्गमीक्षका निमित्त बन जाता है"। यह सुनधन्वन्तरि बोला "ह भगवन् ! यदि यही रात है तो मुभ.पर भी कोई व्रत देकर अनुग्रह करना चाहिये। फलतः उसने तीन अन घारगा किये १-यात्रि भोजन न करना २-अज्ञात फल भता न करना ३---विना मिनार सहसा कोई काम न करना। तीनोंहीं व्रतों का फल अन भवमें भाग्पर संमार से विरक्त होकर घरधर्माचार्य के पास जाकर उसने जिनदीक्षा धारण करती। एक दिन जब चन्वन्तरि निराज आतापन योग में स्थित थे तब उक्त विश्वानलीम मित्र आया और आकर अत्यन्त प्रेमके साथ उनसे बात करने लगा किंतु बे मौनस्थ रहने के कारण कुछ भी नहीं बोले --उत्तर नहीं दिया। फलतः वह उनसे रुष्ट होकर चला गया और सहसजट नाम जटाधारी तापसी का शतजट नामक शिष्य होगया । धन्वन्तरिने योग पूरा हो जानेपर पुन: जाकर उसकी बहुत कुछ समझाकर साथ चलन को कहा परन्तु वह नहीं पाया । श्रायुके अन्तमें समाधिद्वारा धन्वन्तरि अच्युतस्वर्ग में अमिताभ नामका देव हुआ और विश्वानुलोम व्यन्तरॉक गवसेना अधिपति विजयदेव का विद्युत्प्रभ नामका बाहन हुआ। एक समय नन्दी नरद्वीपमें श्राशान्हिक पर्वके समय कृत्रिम चैत्य चैत्यालयोंकी पन्दना बाद अमितप्रभने विद्युअभसे पूछा "जन्मान्तरकी बात याद है ?" इसरमें उसने कहा-'अच्छी तरह याद है 1 अतिप्रम-तुमने ब्रह्मचर्यपूर्णक कायक्लंशका यह फल पाया है। किंतु मैंने सकल चारित्रका पालन किया था इसलिये यह कर्मका विपाक हुआ है । विद्युत्प्रभ चौला परन्तु हमारे सिद्धान्ता नुसार जमदग्नि मतङ्ग पिङ्गल कपिजल आदि जितनं महर्षि है वे अपने नुपाविशेष प्रभावसे तुमसे भी अधिक अभ्युदयको प्राप्त करेंगे इसलिये इसने गर्व और आश्चर्य में मत पडी।" ___ अमितप्रम---विद्युत्प्रभ ! अभी भी दुराग्रह नहीं छोडना चाहते | अच्छा चलो, लोगोंक चिचकी परीक्षा करले। दोनोंने मर्त्यलोकमें आकर सबसे प्रथम जमदग्निकी परीक्षा की। दोनों देव पश्चिमिथुनका सप रखकर जमदग्निकी दाढीमें बैठकर इसतरह बातें करने लगे-- पक्षी—प्रिये ! तेस प्रसवकाल निकट है किंतु मुझे पचिराज वैनतेयकी लड़कीके विवाइमें आना भी अत्यन्त आवश्यक है । अतः मैं शीघ्र ही आजाऊंगा। चिंता मत करना । किंतु पक्षिणीने स्वीकार नहीं किया। पीने इसपर मांकी नापकी कसम मी साई और भी तरह विश्वास दिलानेपर भी
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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