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________________ - - - ४६६ समकारएहसावकाचार चौथेमें रखती। इसीतरह निषेवरूप चार अंगोंके दृष्टांतों के बाद अन्य भिन्न प्रकारका अर्थान् विषिरूप चार अंगों में प्रथम जिनेन्द्रभक्त, उसके बाद छठे अंगमें वारिपेण लक्ष्य है। तथा मातवे आठवे अगामें विष्णुकुमार एवं वनकुमार लक्ष्य है। __लत्प—जिसका लक्षण निर्देश किया जाय उसको लक्ष्य कहते हैं । निरुक्ति के अनुसारलक्षयितु योग्याः लक्ष्याः, तेषां भावः लक्ष्यता ताम अर्थात जिनको दिखाकर विवक्षित अंगके लक्षण का अर्थ भलेप्रकार समझाया जा सके, ऐसा लक्ष्य शब्दका अर्थ होता है । यह शब्द प्रत्येक बागके साथ जोडना चाहिये । यथा सबसे पहले अंगमें अंजन चोर लक्ष्य है । इसके बाद दूसरं अंगमें अनन्तमति लक्ष्य है । इत्यादि । । गताः-यहांपर प्रयुक्त बहुवचन प्रत्येक अंगमें दृष्टांतभूत व्यक्तियों की बहु संख्या को मूचित करता है। शेषयोः-उपयुक्त छह अंगोमेंसे बाकी बचे वात्सल्य और प्रमारना इन दोनों अमोमें विष्णुकुमार और वज्र कुमार लक्ष्य हैं। ____ अजनचोर--थई वास्तविक नाम नहीं किंतु अन्वधं नाम है उसका वास्तविक नाम नो ललित था । कितु अदृश्य बनानेवाला भजन उसको सिद्ध था और चोरीमें वह उसका उपयोग किया करता था इसलिए उसको अंजनचोर कहते थे । यही कारण है कि अंजन और नामसे अनेक व्यक्ति प्रसिद्ध है किंतु ग्रहांपर जो विवक्षित है उसकी कथा आगे दी गई है। बाकी नाम यहां म्यक्तियोंके संज्ञानाचा है। पाठोंही अंगोमें प्रसिद्ध व्यक्तियोंकी संक्षिप्त कथाएं। अंजनचोर जम्बूद्वीप में जनपद नामका देश उसमें भूमितिलक नामका नगर था। वहां के राजा का नाम नरपाल और रानी का नाम गुणमाला था । इमी राजाका मुनन्द नामक एक से था। जिसकी धर्मपत्नीका नाम सुनन्दा था । इसके सात पुत्र थे। सबसे छोटेका नाम था मन्वन्तरी । इसी राजा का सोमशर्मा नामका पुरोहित था । और उसकी भार्या का नाम था अग्निना । इन दोनोंके भी सात पुत्र हए । उनमें सबसे छोटे का नाम था विश्वानुलोम । धन्वन्तरि और विश्वानुलोम लंगोटिया मित्र और साथ ही सस्त व्यसनोंमें रत थे। इनकी अनार्य कार्योंमे प्रवृत्ति के कारण ही राजाने इन दोनों को देशस निकाल दिया। यहाँसे निकलकर वे दोनों कुरुर्जगल देशक हस्तिनाग पुरमें जाकर रहने लगे। जहां का राजा वीर रानी नीरवती और उनका यम दएर नाम कोतवाल था। १-हमारे पासके प्राचीन हस्तलिखित गुटका में गतो की जगह गताः ऐमा सुधारा हुआ पाठ पाया जाता है। जो कि आचार्य प्रभाचन्द्र की दीकाके अनुसार भी ठीक पाठ है। २--शेषयोः शब्दमे शेषके दोनोंमेंसे क्रमसे एक एक में एक एक प्रसिद्ध है गेमा अर्थ न करके शेषके योनी ही श्रगामें दोनोंही प्रसिद्ध हुए है ऐसा अर्थ करना अधिक उचित प्रतीत होता है । अन्यथा शेषयो।' इधर विषयम का खास प्रयोग करनेकी भाबश्यकता नहीं मालक होती।
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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