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राष्ट्रभावका बार
अवध्यताकी भावनाको पैदा करनेवाली जिन भगवान की देशनामें ही वास्तवमें सर्व हितकारिया निहित है। यही कारण है कि जैनेतर विद्वान् भी इस घातको जाहिर कर चुके हैं कि अन्यस्थानों में जो अहिंसा या दया का कुछ भी स्वरूप दिखाई पड़ता है वह वास्तवमें जैनशासनकी ही छाप है। उसीकी देन है।
शास्त्र - से मतलव लिपिबद्ध ग्रन्थों का नहीं अपितु उपदेश रूप उस शासनसे है जो कि तीन जगत्के जीवोंके हितके लिये स्वयं ही विना किसी इच्छा के ही तीर्थकर प्रकृति और भव्य श्रोताओं भाग्यवश प्रवृत्त हुआ करता है !
कापथपट्टनम् - संसारकै कारण भूगूणस्वरूप धर्म को सापक हैं। गवान् का शासन इस मार्गका निरसन करता हैं। यह भी इसकी एक विशेषता है।
तात्पर्य -- सम्यग्दर्शन के विषयभूत जिस श्रागमके स्वरूपका इस कारिकाके द्वारा प्रतिषादन किया गया है, उसकी अनेक असाधारणताओंका आचार्यने वह विशेषण देकर दिग्दर्शन करा दिया है। प्रत्येक विशेषणका संक्षेपमें ऊपर अर्थ और आशय लिखा जा चुका है। यहां सब मे प्रथम तो यह बात ध्यान में देनेकी हैं कि आचार्य ने पहले तो धर्म के स्वरूपका वर्णन करते हुए उसके तीन विषयों में एक सम्पज्ञानका उल्ल ेख करके मिथ्याज्ञानों का वार और दिया और अब सम्पदर्शन विषयका वर्णन करते हुवे श्रागम शब्दका उल्लेख करके सम्यग्ज्ञ नकंभी अनेक भेदों में से विशिष्ट सम्यग्ज्ञानका बोध करा रहे हैं। क्योंकि आगम शब्दसे उसी सम्यग्ज्ञानका ग्रहण करना है जो कि आप्तवाक्यनिबन्धन है। प्राप्त के वाक्य सुनकर जो अर्थज्ञान होता है उसी को भागम कहते हैं । प्राप्तका स्वरूप बताया जा चुका है। उनके उपदेशको सुनकर अर्थका अवधारण कर गणथर देव पुनः उपदेश देकर अर्थ का अवधारण अन्य गणधरों या सामान्य श्राचायों आदि की कराते हैं। इस प्रकारके जो यंत्र तक आप्त वाक्यों को सुनकर होनेवाले ज्ञान की परम्परा चली आ रही है उस परम्परीय ज्ञानका ही नाम है आगम ।
अन्य भी अनेक भागम आजकल लोकमें प्रसिद्ध हैं। उन सबसे जैनागममें क्या २ असाधारा विशेषताए हैं इसका बोध कराने के लिए आचार्यने धाम के यहां यह विशेषण दिये हैं। जिनके कि द्वारा स्वरूप विपर्यास तथा फल विप्रतिपत्तियाँ आदिका निराकरण होकर उसकी निर्वाध सत्पता और जीवमात्र के लिये हितकरता स्पष्टतया सिद्ध होती है ।
दूसरी बात यह कि आगम में कथा - प्रतिपाय विषय की निरूपणा विषय भेदके अनुसार चार भागों में विभक्त की गई है । भाचेपिसी विशेषिणी संवेजिनी और निर्वेजिनी २ | विचार करनेपर मालुम होता है कि इस कारिकामें भी भागमकी इन चार कथाओंोंकी तरफ आचार्य ने दृष्टि रखी है। जैसा कि शास्त्र शासन के दिये गये विशेषयों से प्रतीत होता है।
१- स्व० बालगंगाधर तिलककी "राम० वैदिक सम्प्रदायपर अहिंसाकी छाप जैनधर्म की है" इत्यादि० २– नापिणी कर्या कुर्यामाक्षाः स्वमतसं । विशेपणी कर्मा नः कुर्यादुमंत नि । ॥ २३५ ॥
जिम कर्जा पुर्या फलसम्पत्प्रपंचने । निर्मेजिनीं कथां कुर्याम्यजनन प्रति ॥ २३६ ॥ आ०पु०प०