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________________ पत्रयणसारो ] [ ६१ भावार्थ:- ये केचनात्मानमंगुष्ठपर्व मात्र, श्यामाकतण्डुलमात्रं वटककणिकादिमात्रं वा मन्यन्ते ते निषिद्धाः । येपि समुद्घातसप्तकं विहाय देहादधिक मन्यन्ते तेपि निराकृता इति ॥२४-२५।। उत्थानिका— अब जो आत्मा को ज्ञान के बराबर नहीं मानते हैं, ज्ञान से कमतीबढ़ती मानते हैं उनको दूषण देते हुए कहते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ - ( इह ) इस जगत में ( जस्स) जिस वादी के मत में (आवा) आत्मा ( णाणपमानं ) ज्ञान प्रमाण (ण हवदि) नहीं होता है ( तस्स ) उसके मत में ( सो आवा) वह आत्मा ( णाणदो ) ज्ञान गुण से ( होणो वा ) या तो होन अर्थात् छोटा ( अहियो वा ) या अधिक अर्थात् बड़ा (हववि) होता है ( धुवम् एध ) यह निश्चय ही है । (जदि) यदि ( सो आबा) वह आत्मा (हीणो ) हीन या छोटा होता है तब ( तं ण) सो ज्ञान (अचेदणं ) चेतन रहित होता हुआ ( ण जाणादि ) नहीं जानता है अर्थात् यदि यह आत्मा ज्ञान से कम या छोटा माना जाय तब जैसे अग्नि के बिना उष्ण गुण ठंडा हो जायेगा और अपने जलाने के काम को न कर सकेगा तैसे आत्मा के बिना जितना ज्ञान गुण बचेगा यह ज्ञान गुण अपने आश्रयभूत चैतन्यमयी द्रव्य के बिना जिस आत्मद्रव्य के साथ ज्ञान गुण का समवाय सम्बन्ध है, अचेतन या जड़रूप होकर कुछ भी नहीं जान सकेगा । ( वा णाणदो) अथवा ज्ञान से ( अहियो ) अधिक या बड़ा आत्मा को माने तब ( जाणेण विणा ) ज्ञान के बिना ( कहं) कैसे ( णादि) जान सकता है । अर्थात् यदि यह माने कि ज्ञान गुण से आत्मा बड़ा है तब जितना आत्मा ज्ञान से बड़ा है, उतना आत्मा जैसे उष्ण गुण के बिना अग्नि ठंडी होकर अपने जलाने के काम को नहीं कर सकती है तैसे ज्ञान गुण के अभाव में अचेतन होता हुआ किस तरह कुछ जान सकेगा अर्थात् कुछ भी न जान सकेगा । यहाँ यह भाव है कि जो कोई आत्मा को अंगूठे को गांठ के बराबर या श्यामाक तंदुल के बराबर या बड़ के बीज के बराबर आदि रूप से मानते हैं उनका निषेध किया गया तथा जो कोई सात समुद्घात के बिना आत्मा को शरीर प्रमाण से अधिक मानते हैं। उनका भी निराकरण किया गया है ।। २४-२५ ॥ अथात्मनोऽपि ज्ञानवत् सर्वगतत्वं न्यायायातमभिनन्दति — सव्वगदो जिणवसही सव्वे वि य तगया जगदि अट्ठा । पाणमयादो य जिणो विसयादी तस्स ते भणिदा ॥२६॥ (१) भणिया (ज० वृ० )
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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