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________________ ६४२ ] [ पत्रयणसारो वस्तिरत्वक्तारोनयोगका सन्ततिहितावस्थ लक्ष्योन्मुखायोमयानयोमयगुणकामुकान्तराल वर्त्यगुणकामुकान्तरालवतलं हितावस्थासहिताव स्थलक्ष्योन्मुख लक्ष्योन्मुखप्राक्तन विशिखवत् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावर्यु गपत् स्वपरद्रव्यक्षेत्रकाल भाव चास्तित्ययववक्तव्यम् ॥ ७॥ नास्तित्वा वक्तव्यतयेनायोमयागुणकार्मुकान्तरालवत्यंसं हितावस्था लक्ष्योन्मुखायोमयानयोमय गुणकामुकान्तरालवर्त्य गुणकामुं कान्तरालतिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुख लक्ष्योन्मुखप्राक्तन विशिखवत् परद्रव्य क्षेत्रकाल भावैयुगपत्स्व परद्रव्य क्षेत्रकाल भावश्च नास्तित्त्वदवक्तव्यम | ८ | अस्तित्वनास्तित्वा वक्तव्यनयेनायोमयगुणकार्मुकान्तरा आत्मद्रव्य अस्तित्व अवक्तव्य नय से स्व- द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव से तथा युगपत् स्वपरद्रव्य-क्षेत्र काल-भाव से अस्तित्व वाला अवक्तव्य है - ( स्वचतुष्टय से ) लोहमय, प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में निहित संधान अवस्था में रहे हुए और लक्ष्योन्मुख ऐसे तथा ( युगपत स्वपर चतुष्टय से) लोहमय तथा अलोहमय, प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में निहित तथा प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में अनिहित, संधान अवस्था में रहे हुये तथा संधान अवस्था में न रहे हुये और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहले के वाण की भांति [ जैसे पहले का बाण (१) स्वचतुष्टय से तथा (२) एक ही साथ स्वपर चतुष्टय की अपेक्षा से ( १ ) अस्तित्व तथा ( २ ) अवक्तव्यनय है, उसी प्रकार आत्मा अस्तित्व अववतव्यनय से ( १ ) स्वचतुष्टय की तथा ( २ ) युगपत् स्वपरचतुष्टय की अपेक्षा से ( १ ) अस्ति तथा ( २ ) अवक्तव्य है । ] ॥७॥ आत्मद्रव्य नास्तिस्व-अवक्तव्यमय से पर द्रव्य-क्षेत्र काल भाव से तथा युगपत् स्वपर- द्रवप्रक्षेत्र-काल- माव से नास्तित्व वाला अवषतथ्य है-- ( परचतुष्टय से ) अलोमय, प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में अनिहित, संधान अवस्था में न रहे हुये और अलक्ष्योन्मुख ऐसे तथा ( युगपत् स्वपरचतुष्टय से) लोहमय तथा अलोहमय, प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में निहित तथा प्रत्यञ्चा और के मध्य में अनिहित, संधान अवस्था रहे हुये तथा संधान अवस्था में न रहे हुये और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहले के बाण की भांति । [ जैसे पहले का बाण (१) परचतुष्टय की सथा (२) एक ही साथ स्वपर चतुष्टय की अपेक्षा से ( १ ) नास्ति तथा (२) अववतव्य है, उसो प्रकार आत्मा नास्तित्व अवक्तव्य नय से ( १ ) पर चतुष्टय की तथा ( २ ) युगपत् स्व परचतुष्टय की अपेक्षा से ( १ ) नास्ति तथा (२) अवक्तव्य CREW आत्मद्रव्य अस्तित्व-नास्तित्व- अवक्तव्य नय से स्वद्रव्य क्षेत्र - काल - भाव से परद्रव्य-क्षेत्र - फाल- भाव से तथा युगपत् स्वपर - द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव से अस्तित्ववाला -
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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