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________________ पवयणसारो ] [ ६४३ लवनिमलिसावस्थलक्ष्योन्मवानगोमयागुणका कान्तरालवयंसंहितावस्थालक्ष्योन्मुखायोमयानयोमयगुणकार्मु कान्तरालवर्पगुणकामु कान्तरालयतिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुखा लक्ष्योन्मुखप्राक्तनविशिखवत्स्वद्रव्यक्षेत्रकालभाषः परद्रव्यक्षेत्रकालभावयुगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालमावश्चास्तित्वनास्तित्ववदाक्तव्यम् ।। विकल्पनन शिशुकुमारस्थविरकपुरुषवत्सविकल्पम्।१०। अविकल्पनयेनेकपुरुषमात्रवदविकरूपम् ।११। नामनयेन तदात्मवत् शब्दब्रह्मस्पशि ॥१२॥ स्थापनानयेनं मूलित्ववत्सकलपुद्गलालम्बि ।१३। नास्तित्व वाला अवक्तव्य है-(स्वचतुष्टय से) लोहमय, प्रत्यञ्चा और धनुष के मध्य में निहित, संधान अवस्था में रहे हुये और लक्ष्योन्मुख ऐसे-(परचतुष्टय से) अलोहमय-प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में अनिहित संधान अवस्था में न रहे हुये और अलक्ष्योन्मुख ऐसे तथा (युगपत स्वपरचतुष्टय से) लोहमय तथा अलोहमय, प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में निहित तथा प्रत्यंचा और धनुष के मध्य में अनिहित, संधान अवस्था में रहे हुये तथा संधान अवस्था में न रहे हुये और लक्ष्योन्मुख और अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहले के वाण की भांति । [जैसे पहले का बाण १. स्वचतष्टय की, २. परचतुष्टय की तथा ३. युगपत स्वपरचतुष्टय को अपेक्षा से १. अस्ति, २. नास्ति तथा ३. अवक्तव्य है, उसी प्रकार आत्मा अस्तित्वनास्तित्व-अवक्तव्य नय से १. स्वचतुष्टय की, २. परचतुष्टय को तथा ३. युगपत् स्व-परचतुष्टय की अपेक्षा से १. अस्ति, २. नास्ति तथा ३. अवक्तव्य है।]men आत्मद्रव्य विकल्पनय से, बालक, कुमार और वृद्ध ऐसे एक पुरुष की भांति, सविकल्प है, जैसे कि एक पुरुष बालक, कुमार और वृद्ध के भेद से युक्त है वैसे ही आत्मा भी नारक, तिथंच, मनुष्य, देव, सिद्ध भेद से युक्त है, अतः सविकल्प है ॥१०॥ आत्मद्रव्यअधिकल्पनय से, एक पुरुषमात्र की भांति, अविकल्प है अर्थात् अभेवनय से आत्मा नारक तिथंच आदि के भेद से रहित एक आत्म-तथ्य मात्र है जैसे कि एक पुरुष बालक, कुमार और युद्ध के भेद से रहित एक पुरुषमात्र है ॥११॥ _ आत्मद्रव्य नाममय से, नाम वाले की भांति, शब्दब्रह्म को स्पर्श करने वाला है अर्थात आत्मा नामनय से शब्दब्रह्म का वाच्य है, जैसे कि नाम वाला पदार्थ उसके नामरूप शब्द से कहा जाता है ॥१२॥ आत्मद्रव्य स्थापनानय से, मूतित्व की भांति, सर्व पुद्गलों का अवलम्बन करने बाला है अर्थात् स्थापनानय से आत्मद्रस्य को पुद्गल में स्थापना की जाती है, जैसे मूर्ति की ॥१३॥ आत्मद्रव्य द्रव्यनय से बालक सेठ की भांति और श्रमण राजा की भांति, अनागत
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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