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________________ २० ] सुत्र एक है । आगे [ पवयणसारो ज्ञान तथा सुख के परिणमन के कथन को मुख्यता से प्रथम गाथा है और केवलज्ञानो को भोजन का निराकरण को मुख्यता से दूसरी गाथा है, इस तरह "पक्खीणघाइकम्मो" को आदि लेकर दो गाथाएं हैं। इस तरह दूसरे अन्तर अधिकार में चार स्थल से समुदाय पातनिका पूर्ण हुयी। अथ शुद्धोपयोगलाभानन्तरमाविशुद्धात्मस्वभावलाभमभिनन्दति - उवओगविसुद्धो जो बिगवावरणंत रायमोहरओ । भूदो सयमेवादा जादि पारं पेयभूदाणं ॥ १५ ॥ उपयोगविशुद्धः यः त्रिगतावरणान्तरायमोहजाः । भूतः स्वयमेवात्मा याति पारं ज्ञेयभूतानाम् ।। १५ ।। यो हि नाम चैतन्यपरिणामलक्षणेनोपयोगेन यथाशक्ति विशुद्धो भूत्वा वर्तते स खलु प्रतिपदमुद्यमानविशिष्ट विशुद्धिशक्ति प्रथिता संसार बदतर मोहग्रन्यितयात्यन्त निर्विका चैतन्यो निरस्तसमस्तज्ञानवर्शनावरणान्तरायतया निःप्रतिविम्मिताश्मशक्तिश्व स्वयमेव भूतो ज्ञेयत्वमापन्नानामन्तमवाप्नोति । वह किलात्मा ज्ञानस्वभावो ज्ञानं तु ज्ञेयमात्रं ततः समस्तज्ञेयान्ततिज्ञानस्वभावमात्मानमात्मा शुद्धोपयोगप्रसादादेवासाव यति ॥१५॥ - भूमिका – अब, शुद्धोपयोग के लाभ के तुरन्त बाद होने वाले विशुद्ध आत्मस्वभाव के लाभ की प्रशंसा करते हैं (अर्थात् शुद्धोपयोग से सर्वज्ञ हो जाता है - यह कहते हैं) - - अन्वयार्थ – [ यः ] जो [ उपयोगविशुद्धः ] उपयोग विशुद्ध है ( जो शुद्धोपयोग परिणाम से विशुद्ध होकर बर्त रहा है) [आत्म | वह आत्मा [ विगतावरणान्तरायमोहरजाः | नष्ट हो गया है ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और मोहनीयकर्म जिसका ऐसा [ स्वयमेव भूतः ] स्वयमेव होता हुआ | ज्ञेयभूतानां ] ज्ञेय-भूत पदार्थों के [ पारं ] पार को [ याति ] प्राप्त होता है ( सब को जानता है) । टीका - जो ( आत्मा ) चैतन्य परिणामस्वरूप उपयोग के द्वारा यथाशक्ति विशुद्ध होकर वर्तता है, वह ( आत्मा ) वास्तव में ( १ ) पव-पद पर प्रगट होती जाती है, विशिष्ट विशुद्धि शक्ति जिसको अर्थात् पद-पद पर विशिष्ट विशुद्धि शक्ति प्रगट हो जाने के कारण अनादि संसार से बंधी हुई दृढतर मोह ग्रन्थि के छूट जाने से अत्यन्त निविकार चैतन्य वाला होता हुआ और ( २ ) समस्त ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय के नष्ट हो
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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