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________________ पवयणसारो । [ २५ ठहरा हुआ है, जैसे स्वर्ण पदार्थ, स्वर्ण द्रव्य पीतपना आदि गुण तथा कुंडलादि पर्यायों में तिष्ठने वाला है। ऐसा शुद्ध द्रव्य गुण पर्याय का आधारभूत जो शुद्ध अस्तिपना उससे 'परमात्मा' पदार्थ सिद्ध है जैसे सुवर्ण पदार्थ, सुवर्ण द्रव्य गुण पर्याय को सत्ता से सिद्ध है। यहां यह तात्पर्य है कि जैसे मुक्त जीव में द्रव्य गुण पर्याय परस्पर अविनाभूत दिखाए गए हैं, तैसे ही संसारी जीव में भी मतिनानादि विभावगुणों के तथा नर नारकादि विभावपर्यायों के होते हए नय विभाग से सामान कान लेना चाहिये, तसे हो पुद्गलादि के भीतर भी। इस तरह शुभ परिणामों की मुख्यता से व्याख्यान करते हुए तीसरे स्थल में दो गाथाएं पूर्ण हुई ॥१०॥ अथ चारित्रपरिणामसम्पर्कसम्भववतोः शुद्धशुभपरिणामयोरुपावानहानाय फलमालोचयति धम्मेण परिणदप्पा अपा जदि सुद्धसंपयोगजुदो । 'पावदि णिव्वाणसुहं सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं ॥११॥ धर्मेण परिणतात्मा आत्मा यदि शुद्धसंप्रयोगयुतः।। प्राप्नोति निर्वाणसुखं शुभोपयुक्तो वा स्वर्गसुखम् ॥११॥ यदायमात्मा धर्मपरिणतस्वभावः शुद्धोपयोगपरिणतिमुवहति तदा निःप्रत्यनीकशक्तितया स्वकार्यकारणप्तमर्थचारित्रः साक्षान्मोक्षमवाप्नोति । यवा तु धर्मपरिणतस्वभावोऽपि शुभोपयोगपरिणत्या संगच्छते तदा सप्रत्यनीकशक्तितया स्वकार्यकरणासमर्थः कथंचितिरुखकार्यकारिचारित्रः शिखितप्तघृतोपसिक्तपुरुषो दाहदुःखमिव स्वर्गसुखबन्धमवाप्नोति । अतः शुद्धोपयोग उपादेयः शभोपयोगो हेयः ॥११॥ भूमिका--अब चारित्र-परिणाम के साथ सम्बन्ध रखने से उत्पन्न होने वाले शुद्ध और शुभ परिणामों के क्रम से ग्रहण और त्याग के लिये शुद्ध-परिणाम के ग्रहण और शुमपरिणाम के त्याग के लिये उनके फल का विचार करते हैं अन्ययार्थ-[धर्मेण परिणतात्मा] धर्म स (चारित्र) से परिणत स्वरूपवाला [आत्मा] यह आत्मा [यदि] यदि [शुद्धसम्प्रयोगयुतः | शुद्ध उपयोग सहित हो जाता है तो बह [निर्वाणसुखम् ] मोक्ष सुख को [आप्नोति ] पाता है [वा] और यदि वह [शुभोपयुक्त:] शुभ उपयोग वाला होता है तो [स्वर्गसुखम् ] स्वर्गके सुखको [प्राप्नोति] प्राप्त करता है। टीका-जब यह आत्मा धर्म-परिणत स्वभाव वाला होकर शुद्धोपयोग रूप परिणति को धारण करता है तब विरोधी शक्ति (राग भाव) से रहित होने के कारण अपना कार्य (१) पावइ (ज० ३.०), (२) य( ज. वृ०)
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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