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। पश्यणसारा
तात्पर्यवृत्ति __ अथ नित्यकान्तक्षणिकैकान्तनिषेधार्थ परिणामपरिणामिनोः परस्परं कथंचिदभेदं दर्शयतिणस्थि विणा परिणाम अत्थो मुक्तजीवे तावत्कथ्यते, सिद्धपीयरूपशुद्धपरिणामं विना शुद्धजीवपदार्थो नास्ति । कस्मात् ? संज्ञालक्षणप्रयोज नादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् । अत्यं विणेह परिणामो मुक्तात्मपदार्थ विना इह जगति शुद्धात्मोपलम्भलक्षण: सिद्धपर्याय रूपः शुद्धपरिणामो नास्ति । कस्मात् ? संज्ञादिभेदेऽपि प्रदेशभेदाभावात् दश्वगुणपज्जयत्यो आत्मस्वरूपं द्रव्यं तत्रैव केवलज्ञानादयो गुणा: सिद्धरूप: पर्यायच, इत्युक्तलक्षणणेषु द्रव्यगुणपर्यायेषु तिष्ठतीति द्रव्यगुणपर्यायस्थो भवति । स क: कर्ता ! अत्यो परमात्मपदार्थः, सुवर्णद्रव्यपीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायस्यसुवर्णपदार्थवत् । पुनश्व किरूप: ? अस्थित्तणिन्यतो शुद्धदमागमा पर्यायापारभुत गच्छुद्धास्तित्वं तेन निवृत्तोऽस्तित्वनिवृत्त:, सुवर्णद्रव्यगुणपर्यायास्तित्वानवतसुवर्णपदार्थवदिदि । अयमत्र तात्पर्थिः । यथामुवतजीवे द्रव्यगुणपर्यायत्रयं परस्पराविनाभूत दशितं तथा ससारिजीवेऽपि मतिज्ञानादिविभावगुणेषु नरनारकादिविभावपर्यायेषु नविभागेन यथासंभव विज्ञेयम्, तथैव पुद्गलादिष्वपि । एवं शुभाशुभशुद्धपरिणामव्याख्यान मुख्यत्वेन तृतीयस्थले गाथा द्वयं गतम् ।।१०॥
उत्थानिका--आगे जो कोई पदार्थ को सर्वथा अपरिणामी नित्य कूटस्थ मानते हैं तथा जो पदार्थ को सदा ही परिणमनशील क्षणिक ही मानते हैं, इन दोनों एकान्त भावों का निराकरण करते हुए परिणाम और परिणामी जो पदार्थ हैं, उनमें परस्पर कथंचित् अभेदभाव दिखलाते हैं । अर्थात् जिसमें अवस्थायें होती हैं, वह द्रव्य तथा उसकी अवस्थाएं किसी अपेक्षा से एक ही हैं, ऐसा बताते हैं
__अन्वय सहित विशेषार्थ-(अत्यो) पदार्थ (परिणामं बिना) पर्याय के बिना (पस्थि) नहीं रहता है । यहाँ वृत्तिकार ने मुक्त जीव में घटाया है कि सिद्ध पर्यायरूप शुद्ध परिणाम को छोड़कर शुद्ध जीव कोई अन्य पदार्थ नहीं होता है क्योंकि यद्यपि परिणाम और परिणामी में संजा, संख्या, लक्षण प्रयोजन को अपेक्षा भेद है, तो भी प्रवेश-भेव न होने से अभेद है । तथा (इह) इस जगत में (परिणामी) परिणाम (अत्थं विणा) पदार्थ के बिना नहीं होता है। अर्थात शद्ध आत्मा की प्राप्ति रूप है लक्षण जिसका ऐसी सिद्ध पर्यायरूप शुद्ध परिणति मुक्तरूप आत्म-पदार्थ के बिना नहीं होती है, क्योंकि परिणाम परिणामी में संज्ञादिसे भेद होने पर भी प्रदेशों का भेद नहीं है। (वब्वगुणपज्जयत्थो) द्रव्य गुण पर्यायों में ठहरा हुआ (अत्यो) पदार्थ (अस्थित्तणिश्वत्तो) अपने अस्तित्व में रहने वाला अर्थात् अपने अस्तिपने से सिद्ध होता है ।
- यहाँ शुद्ध आत्मा में लगाकर कहते हैं कि आत्म-स्वरूप द्रव्य है, उसमें केवल मानादि गुण हैं तथा सिद्ध रूप पर्याय है । शुद्ध आत्म-पदार्थ इस तरह द्रव्य गुण पर्याय में