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________________ ४६४ । [ पवयणसारो उत्थानिका-आगे यह कहते हैं कि मोक्षार्थी इन दोनो द्रव्य और भावलिंगों को ग्रहणकर तथा पहले भाविनगमनय से जो पंच आचार का स्वरूप कहा गया है उसको इस समय स्वीकार करके उस चारित्र के आधार से अपने स्वभाव में तिष्ठता है, वही श्रमण होता है अन्वय सहित विशेषार्थ-(परमेण गुरुणा) उत्कृष्ट गुरु से (तं पि लिग) उस उभयलिंग को ही (आदाय) ग्रहण करके फिर (तं णमंसित्ता) उस गुरु को नमस्कार करके तथा (सवदं किरिय) व्रत सहित क्रियाओं को (सोच्चा) सुन करके (उद्विदा) मुनिमार्ग में तिष्ठता हुआ (सो) वह मुमुक्षु (समणो) मुनि (हदि) हो जाता है । दिव्यध्वनि होने के काल की अपेक्षा परमागम का उपदेश करने रूप से अरहंत भट्रारक परमगुरु हैं, दीक्षा लेने के काल में दीक्षादाता साधु परमगुरु हैं । ऐसे परमगुरु द्वारा दी हुई द्रव्य और भावलिंग रूप मुनि की दीक्षा को ग्रहण करके पश्चात् उसी गुरु को नमन करके उसके पीछे व्रतों के ग्रहण सहित बृहत् प्रतिक्रमण क्रिया का वर्णन सुनकर भले प्रकार स्वस्थ होता हुआ वह पूर्व में कहा हुआ तपोधन श्रमण हो जाता है। विस्तार यह है कि पूर्व में कहे हुए द्रव्य और भावलिंग को धारण करने के पीछे पूर्व सूत्रों में कहे हुए सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, वीर्यरूप पांच आचारों का आश्रय करता है। फिर अनन्तज्ञानादि गुणों के स्मरण रूप भाव नमस्कार से तैसे ही उन गुणों को कहने वाले वचन रूप द्रव्य नमस्कार से गुरु महाराज को नमस्कार करता है। उसके पीछे सर्व शुभ व अशुभ परिणामों से निवृत्ति रूप अपने स्वरूप में निश्चलता से तिष्ठनेरूप परमसामायिक व्रत को स्वीकार करता है। मन, वचन, काय, कृत, कारित अनुमोदना से तीन जगत् तीन काल में भी सर्व शुभ अशुभ कर्मों से भिन्न जो निज शुद्ध आत्मा की परिणति रूप लक्षण को रखने वाली क्रिया उसको निश्चय से बहत् प्रतिक्रमण किया कहते हैं । यतों को धारण करने के पीछे इस क्रिया को सुनता है, फि : विकल्प रहित होकर काय का मोह त्यागकर समाधि के बल से कायोत्सर्ग में तिष्ठता है। इस तरह पूर्ण मुनि की सामग्री प्राप्त होने पर वह पूर्ण श्रमण या साधु हो जाता है, यह अर्थ है ॥२०७॥ इस तरह दीक्षा के सम्मुख पुरुष की दीक्षा लेने के विधान के कथन की मुख्यता से पहले स्थल में सात गाथायें पूर्ण हुई।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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