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________________ पचयणसारो ] [ ४५ १ निश्चयेन तराचारप्रवर्तक स्वशक्त्यनिग्रहनलक्षणदीर्याचार, न शुद्धस्यात्मनस्त्वमसीति जानामि तथापि त्वां तावदासीदामि यावत्त्वत्प्रसादात् शुद्धमात्मानमुपलभे । एवं ज्ञानदनचारित्रतपोवीर्याचारमासोदति च ॥ २०२ ॥ भूमिका – अब, श्रमण होने का इच्छुक पहले क्या-क्या करता है, उसका उपदेश करते हैं अन्वयार्थ - श्रामण्यार्थी [ बन्धुवर्गम् आपृच्छच ] बंधुवर्ग से पूछकर [ गुरुकलत्रपुत्रः विमोचितः ] बड़ों से तथा स्त्री और पुत्र से मुक्त होता हुआ [ज्ञानदर्शन चारित्रतपोवीर्याचारम् आसाद्य ] ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपआचार और वीर्याचार को अंगीकार करके विरक्त होता है । टीका - जो मुनि होना चाहता है पहले ही बंधुवर्ग से (सगे-सम्बन्धियों से ) पूछता है, गुरुजनों (बड़ों) से तथा स्त्री और पुत्रों से अपने को छुड़ाता है, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपआचार तथा वीर्याचार को अंगीकार करता है । वह इस प्रकार है बंधुवर्ग से इस प्रकार कहता है-अहो ! गुरुष के शरीर के बंधुवर्ग में प्रवर्तमान आत्माओ ! इस पुरुष का मेरा आत्मा किचित्मात्र भी तुम्हारा नहीं है - इस प्रकार तुम निश्चय से जानो । इसलिये मैं तुमसे शिवा लेता हूँ । जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है ऐसा यह मेरा आत्मा आज अपने आत्मारूपी अपने अनादिबंधु के पास जा रहा है । अहो ! इस पुरुष के शरीर के जनक (पिता) के आत्मा ! अहो इस पुरुष के शरीर की जननी माता के आत्मा ! इस पुरुष का मेरा आत्मा तुम्हारे द्वारा जनित ( उत्पन्न ) नहीं है, ऐसा तुम निश्चय से जानो । इसलिये तुम इस आत्मा को छोड़ो। जिसे ज्ञान ज्योति प्रगट हुई है ऐसा यह मेरा आत्मा आज आत्मारूपी अपने अनादिजनक के पास जा रहा है । अहो ! इस पुरुष के शरीर की रमणी (स्त्री) के आत्मा ! तु इस पुरुष के मेरे आत्मा को रमण नहीं कराता, ऐसा तु निश्चय से जान। इसलिये तू इस आत्मा को छोड़ । जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है ऐसा यह मेरा आत्मा आज अपनी स्वानुभूति रूपी अनादिरमणी के पास जा रहा है। अहो ! इस पुरुष के मेरे शरीर के पुत्र के आत्मा ! तू इस पुरुष के मेरे आत्मा का जन्य ( उत्पन्न किया गया पुत्र) नहीं है, ऐसा तू निश्चय से जान । इसलिये तु इस आत्मा को छोड़ । जिसे ज्ञानज्योति प्रगट हुई है ऐसा यह मेरा आत्मा आज आत्मारूपी अपने
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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