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________________ [पकयणसारो ] [ ४७६ लिये 'अपयत्तादो चरिया' इत्यादि पांचवें स्थल में सूत्र छः हैं। इस तरह इक्कीस गाथाओं में पांच स्थलों से पहले अन्तर अधिकार में समुदाय - पातनिका है । उत्पानिका – आगे आचार्य निकट भव्य जीवों को चारित्र में प्रेरित करते हैं । अन्य सहित विशेषार्थ - यह आत्मा (जदि ) यदि ( दुक्खपरिमोक्ख ) दुःखों से कारा ( इच्छदि) चाहता है तो ( एवं ) प्रथम पांच गाथा में कहे अनुसार (सिद्धे ) सिद्धों को ( जिणवरबसहे) जिनेन्द्रों को, ( समणे ) और साधुओं को (पुणो पुणो ) बारम्बार . (पणमिय) नमस्कार करके ( सामण्णं ) मुनिपने को ( पडियज्ज) स्वीकार करे। यदि कोई - आत्मा संसार के दुःखों से मुक्ति चाहता है तो उसको उचित है कि दुःख से मुक्ति के मुझने पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करके चारित्र को धारण किया है अथवा दूसरे पूर्व में कहे हुए भव्यों ने चारित्र स्वीकार किया है, इसी तरह वह भी पहले अंजन पादुका अादि लौकिक सिद्धियों से विलक्षण अपने आत्मा की प्राप्तिरूप सिद्धि के धारी सिद्धों को जिनेन्द्रों में श्रेष्ठ ऐसे तीर्थकर परमदेवों को तथा चैतन्य चमत्कार मात्र अपने आत्मा के 1- सम्यक श्रद्धान; ज्ञान तथा चारित्र रूप निश्चय रत्नत्रय के आचरण करने वाले, उपदेश वेने वाले तथा साधन में उद्यमी ऐसे श्रमण शब्द से कहने योग्य आचार्य, उपाध्याय तथा ओं को बार-बार नमस्कार करके साधु के चारित्र को स्वीकार करे । सासादन गुणबान से लेकर streaथ्य नाम के बारहवें गुणस्थान तक एकदेश जिन कहे जाते तथा वो गुणस्थान वाले केवलीमुनि जिनवर कहे जाते हैं, उनमें मुख्य जो हैं उनको जिनबस या तीर्थंकरपरमदेव कहते हैं । : यहाँ कोई शंका करता है कि पहले इस प्रवचनसार ग्रन्थ के प्रारम्भ में यह कहा क्या है कि शिवकुमार नाम के महाराजा यह प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं शांत भावको या समता मावको आश्रय करता हूँ अब यहाँ कहा है कि महात्मा ने चारित्र स्वीकार किया था। इस कथन में पूर्वापर विरोध आता है। इसका समाधान यह है कि आचार्य ग्रन्थ प्रारम्भ से ही पूर्व दीक्षित हैं किन्तु ग्रन्थ करने के बहाने से किसी भी आत्मा को अर्थात् शिवकुमार महाराज को व कहीं अन्य भव्य जीव को उस भावनामय परिणमन होते हुए प्राचार्य दिखाते हैं। इस कारण से इस ग्रन्थ में किसी पुरुष का नियम नहीं है और न काल या नियम है ऐसा अभिप्राय है ॥ २०१ ॥
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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