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पवयणसारो ]
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आठ गाथाओं तक सामान्य भेदभावना है पश्चात् “अस्थित्तणिच्छिदस्सहि" इत्यादि इक्यावन गाथाओं तक विशेष भेदभावना है, इस तरह चार अन्तर अधिकारों में एक सौ तेरह गाथाओं से सम्यग्दर्शन नाम का अधिकार अथवा ज्ञेयाधिकार नाम का दूसरा महाअधिकार समाप्त हुआ !
इस तरह ज्ञानदर्शन अधिकार की समाप्ति करते हुए चौथे स्थल में दो गाथाएं पूर्ण
हुईं।
इस प्रकार प्रवचनसार का दूसरा खण्ड ज्ञेयाधिकार
श्रीमदामृत चन्द्राचार्यकृत तत्त्व प्रदोपिका
तथा जयसेनाचार्य कृत तात्पर्य वृत्ति तथा इन्हीं की भाषा टीकाओं सहित समाप्त
हुवा ।
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