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________________ ४७४ ] [ पक्ष्यणसारो उत्थानिका-इस तरह निज शुद्धात्मा की भावनारूप मोक्षमार्ग के द्वारा जिन्होंने सिद्धि पाई है और जो उस मोक्षमार्ग के आराधना वाले हैं उन सबको इस दर्शन अधिकार की समाप्ति में मंगल के लिये अथवा ग्रंथ की अपेक्षा मध्य में मंगल के लिये उस ही पद की इच्छा करते हुए आचार्य नमस्कार करते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ—(सणसंसुद्धाणं) सम्यग्दर्शन से शुद्ध (सम्मण्णाणोवजोगजताणं) व सम्यग्ज्ञानमयो उपयोग से युक्त तथा (अथ्वाबाधरदाणं) अव्याबाध सुख में लीन (सिद्धसाहणं) सिद्धों को और साधुओं को (णमो णमो) बार बार नमस्कार हो। जो तीन मूढ़ता आदि पच्चीस बोषों से रहित शुद्ध सम्यग्वष्टो हैं, व संशयादि दोषों से रहित सम्यग्ज्ञानमयो उपयोगधारी हैं अथवा सम्यग्ज्ञान और निर्विकल्पसमाधि में वर्तने वाले वीतरागचारित्र सहित हैं तथा सम्यग्ज्ञान आदि की भावना से उत्पन्न अव्याबाध तथा अनन्तसुख में लीन हैं ऐसे जो सिद्ध हैं अर्थात अपने आत्मा को प्राप्ति करने वाले अहंत और सिद्ध हैं तथा जो साधु हैं अर्थात् मोक्ष के साधक आचार्य, उपाध्याय तथा साधु हैं उन सबको मेरा बार बार नमस्कार हो ऐसा कहकर श्रीकुन्दकुन्द आचार्य ने अपनी उत्कृष्ट भक्ति दिखाई है ॥२०॥१॥ इस तरह नमस्कार गाथा सहित चार स्थलों में चौथा विशेष अन्तर अधिकार समाप्त हुआ। इस "अस्थित्त णिच्छिदस्स हि" इत्यादि ग्यारह गाथा तक शुभ, अशुभ, शुद्ध उपयोग इन तीन उपयोग की मुख्यता से पहला विशेष अन्तर अधिकार है फिर 'अपदेसो परमाणु पदेसमत्तीय' इत्यादि नौ गाथाओं तक पुद्गलों के परस्पर बंध की मुख्यता से दूसरा विशेष अन्तर अधिकार है । फिर "अरसमरूव" इत्यादि उन्नीस गाथा तक जीव का पुद्गलकर्मों के साथ बंध कथन की मुख्यता से तीसरा विशेष अन्तर अधिकार है फिर "ण चयदि जो दुममति' इत्यादि बारह गाथाओं तक विशेष भेदभावना की चूलिका रूप व्याख्यान है ऐसा चौथा चारित्र विशेष का अन्तर अधिकार है, इस तरह इक्यावन गाथाओं से चार विशेष अन्तर अधिकारों से विशेष भेदभावना नामक चौथा अन्तर अधिकार पूर्ण हुआ 1 इस तरह श्री जयसेनाचार्य कृत तात्सर्यवत्ति में "तम्हा दंसण माई" इत्यादि पैतीस गाथाओं तक सामान्य ज्ञेय का व्याख्यान है फिर "दव्वं जीव" इत्यादि उत्नीस गाथाओं तक जीव पुद्गलधर्मादि भेद से विशेष ज्ञेय का व्याख्यान है फिर "सपदेसेहि समग्गो"इत्यादि
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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