SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३८ । [ पवयणसारो रागादि भावों में व्याप्त हो जाता है। तथा चैतन्य रूप से विलक्षण पुद्गल द्रव्यमयी सर्व भावों का-ज्ञानावरणीय आदि कर्म की पर्यायों का तो यह आत्मा कभी भी कर्ता होता नहीं । इससे जाना जाता है कि रागादि अपना परिणाम ही कर्म है जिसका ही यह जीव कर्ता है ॥१८४॥ भावार्थ-श्री नेमिचन्द्रसिद्धांतचक्रवर्ती ने भी द्रव्यसंग्रह में जीव का फर्तापना इस तरह बताया हैपुग्गलकम्मादोणं कत्ता ववहारवो दु णिच्चयदा । चेदणकम्माणादा सुद्धणया सुखभावाण ॥ यह आत्मा व्यवहार नय से जानावरणीय आदि पौगलिक कर्मों का कर्ता है परन्तु अशुद्ध निश्चय से रागादि भावों का कर्ता है और शुद्ध निश्चयनय से यह शुद्ध चेतन भावों का कर्ता है ॥१४॥ अथ कथमात्मनः पुद्गल परिणामो न कर्म स्यादिति संदेहमपनुवति गेण्हदि व ण मुचदि करेदि ण हि पोग्गलाणि'कम्माणि । जीवो 'पोग्गलमज्झे वट्टण्णवि सव्वकालेसु ॥१८॥ गृह्णाति नैक न मुञ्चति करोति न हि पुद्गलानि कर्माणि । जीव: पुद्गलमध्ये वर्तमानोऽपि सर्वकालेषु ।।१८५।। न खल्वात्मनः पुगलपरिणामः कर्म परद्रव्योपादनहानशून्यत्वात यो हि यस्य परिणमयिता दृष्टः स न तदुपादानहानशून्यो दृष्टः, यथाग्निरयःपिण्डस्य । आत्मा तु तुल्यक्षेत्रवतित्वेऽपि परद्रव्योपादानहानशून्य एव । ततो न स पुद्गलानां कर्मभावेन परिणमयिता स्पात् ॥१८॥ भूमिका--अब, इस सन्देह को दूर करते हैं कि पुद्गल परिणाम आत्मा का कर्म क्यों नहीं है ? : अन्वयार्थ-~-[जीवः] जीव [सर्वकालेषु] सर्व कालों में (सदा) [पुद्गलमध्ये वर्तमान: अपि] पुद्गल के मध्य में रहता हुआ भी [पुद्गलानि कर्माणि] पौद्गलिक कर्मों को [हि] वास्तव में [गृह्णाति न एव] न तो ग्रहण करता है, [न मुचति ] न छोड़ता है और [न करोति] न करता है। टीका-वास्तव में पुद्गल परिणाम आत्मा का फर्म नहीं है, क्योंकि वह परद्रव्य के ग्रहण त्याग से रहित है। जो जिसका परिणमन कराने वाला देखा जाता है वह उसके ग्रहण त्याग से रहित नहीं देखा जाता, जैसे—अग्नि लोहे के गोले के ग्रहण त्याग से रहित १. पुग्गलाणि (ज० )। २. पुग्गलमझे (ज० वृ०) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy