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________________ पत्रयणसारो ] [ ३६६ यहाँ यह भाव है कि जैसे परमचेतन्यभाव में परिणति को रखने वाले परमात्मा के स्वरूप की भावनामयी धर्मध्यान या शुक्लध्यान के बल से अब जघन्य चिकनाई की शक्ति के समान सब राग क्षय हो जाता है या जघन्य रूखेपने की शक्ति के समान सब द्वेष क्षय हो जाता है तब जैसे जल का और बालू का बंध नहीं होता वैसे जीव का कर्मों से बंध नहीं होता । तथा वैसे हो जघन्यः स्निग्ध या रूक्ष शक्तिधारी परमाण का भी किसी से बंध नहीं होगा, यह अभिप्राय है ।११६५ ॥ अथ परमाणूनां पिण्डत्वस्य यथोदित हेतुत्वमवधारयति - द्वित्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्वेण बंधमणुभवदि । लक्खेण वा तिगुणिदो अणुब्रज्झदि पंचगुणजुत्तो ॥ १६६॥ स्निग्धन द्विगुणश्चतुर्गुणस्निग्धेन बन्धमनुभवति । रूक्षेण वा त्रिगुणतोऽणुर्बध्यते पञ्चगुणयुक्तः ॥ १६६॥ यथोदितहेतुकमेव परमाणूनां पिण्डत्वमवधायं द्विचतुर्गुणयोस्त्रिपञ्चगुणयोश्च द्वयोः स्निग्धयोः द्वयो रूक्षयोर्द्वयोः स्निग्धरूक्षयोया परमाण्याबन्धस्य प्रसिद्धेः । उक्तं च 'जिज्ञा निद्रेण अजति लुक्खा - लुक्खा य पोग्गला । णिद्धलुक्खा य बज्झति रूवारूवी य पोग्गला' "णिद्धस्स णिद्वेण दुराहिएण लुक्खस्स लुषखेण दुराहिएन । णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा । " ॥ १६६ ॥ भूमिका- -- अब यह निश्चित करते हैं कि परमाणुओं के पिण्डत्व में यथोक्त (उपरोक्त ) हेतु है अन्ययार्थ --- [ स्निग्धत्वेन द्विगुणः ] स्निग्धरूप से दो अंशवाला परमाणु [ चतुर्गुणस्निग्धेन | चार अंश वाले स्निग्ध परमाणु के साथ [बंध अनुभवति ] बंध को अनुभव करता ( प्राप्त होता ) है | [वा ] अथवा [रूक्षेण त्रिगुणितः अणुः ] रूक्ष रूप से तीन अंश वाला परमाणु [ पंचगुणयुक्तः ] पांच अंश वाले के साथ युक्त होता हुआ [ वध्यते ] बंधता है । टीका- यथोक्त हेतु से हो परमाणुओं के पिंडत्व होता है - यह निश्चित करना चाहिये, क्योंकि दो और चार गुण वाले तथा तीन और पांच गुण वाले वो स्निग्ध परमाणुओं के अथवा दो रूक्ष परमाणुओं के अथवा दो स्निग्ध-क्ष परमाणुओं के ( एक स्निग्ध और एक रूक्ष परमाणु के ) बंध की प्रसिद्धि है । कहा भी है कि
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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