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________________ [ पवयणसारो ऽस्ति । आदिपरिहीणा आदिशब्देन जलस्थानीयं जघन्यस्निग्धत्वं वालुकास्थानीयं जघन्यरूक्षत्वं भण्यते ताभ्यां विहीना, आदि परिहीना बध्यन्ते । किञ्च-परमचैतन्यपरिणतिलक्षणपरमात्मतत्त्वभाबनारूपधर्म्यध्यानशुक्लध्यानबलेन यथा जघन्यस्निग्धशक्तिस्थानीये क्षीणरागत्वे सति जघन्यरूक्षशक्तिस्थानीये क्षीणद्वेषत्वे च सति जलबालुकयोरिव जीवस्य बन्धो न भवति, तथा पुद्गलपरमाणोरापे जघन्यस्निग्धरूक्षशक्तिप्रस्तावे बन्धो न भवतीत्यभिप्रायः ॥१६५।। उत्थानिका-अब यहां प्रश्न करते हैं कि किस प्रकार के चिकने रूखे गुण से पुद्गल का पिंड बनता है ? इसी का समाधान करते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ-(अणुपरिणामा) परमाणु के पर्याय भेद (णिद्धा वा लुक्खा वा) स्निग्ध हों या रूक्ष हों (समा बा) दो, चार, छः आदि को गणना से समान हों (विसमा वा) अथवा तीन, पाँच, सात नव आदि की गणना से विषम हों (जदि) जो (हि) निश्चय से (आदिपरिहोणा) जघन्य अंश से रहित हों (समदो) तथा गिनती की समानता से (दुराधिगा) को अधिक अंश में हो तो (बझंति) परस्पर बंध जाते हैं। पुद्गल के परमाणु रूक्ष हों या स्निग्ध गुण में परिणत हों तथा सम हों या विषम हों, दो गुणांश अधिक होने पर परस्पर बंध जाते हैं। दो गुण अधिकपने का भाव यह है कि मानलो एक, दो अंशवाला है इतने ही में परिणमन करते हुए एक किसी दो अंश वाले परमाणु में दो अंश अधिक हो गए तब यह परमाणु चार अंश रूप शक्ति में परिणमन करने वाला हो जाता है । इस चार गुण वाले परमाणु का पूर्व में कहे हुए किसी दो अंशधारी परमाणु के साथ बंध हो जायगा तैसे ही दो परमाणु तीन-तीन अंश शक्तिधारी हैं उनमें से एक तीन अंश शक्ति रखने वाले परमाणु में मान लो परिणमन होने से वो शक्ति के अंश अधिक होने से वह परमाणु पाँच अंश वाला हो गया। इस पंच अंश वाले का पहले कहे हुए किसी तीन अंश वाले परमाणु से बंध हो जावेगा। इस तरह वो अंशधारी चिकने परमाणु का दूसरे दो अधिक अंश वाले चिकने परमाणु के साथ या दो अंश वाले रूखे का दो अधिक अंश वाले रूखे के साथ, या दो अंश वाले चिकने का दो अंश अधिक वाले रूखे परमाणु के साथ बंध हो जायेगा । इसी तरह सम का या विषम का अंध दो बंश की अधिकता होने पर ही होगा। जो परमाणु जघन्य चिकनाई को जैसे जल में मान ली जावे या जघन्य रूखेपने को जैसे बाल कण में मान लिया जावे, रखता होगा उनका बंध उस दशा में किसी भी परमाणु से नहीं होगा।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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