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________________ पवयणसारो 1 [ ३६५ होता है, इस कारण से ( दुपदेसादित्तं) दो प्रदेशों के व अनेक प्रदेशों के मिलने से बंध अवस्था को (अदि ) अनुभव करता है । जैसे यह आत्मा शुद्ध बुद्ध एक स्वभावरूप से बंधरहित है तो भी अनादिकाल से अशुद्ध निश्चयनय से स्निग्ध के स्थान में रागभाव से और रूक्ष के स्थान में द्वेषभाव से जब-जब परिणमन करता है तब-तब परमागम में कहे प्रमाण बन्ध को प्राप्त करता है, तसे ही परमाणु भी स्वभाव से बन्ध रहित होने पर भी जब-जब बन्ध के कारणभूत स्निग्ध रूदा गुप से परिणत होता है तब-तब दूसरे पुद्गल परमाणु से विभाव पर्यायरूप बन्ध को प्राप्त हो जाता है ॥ १६३ ॥ अथ कीदृशं तत्स्निग्धरूक्षत्वं परमाणोरित्यावेदयतिएगुत्तरमेगावी अणुस्स णिद्धत्तणं च लुक्खतं । परिणामादो भणिदं जाव अनंतत्तमणुभवदि ॥१६४॥ एकोत्तरमेकाद्यणोः स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वम् । परिणामाद्भणितं यावदनन्तत्वमनुभवति ॥ १६४ ॥ परमाणोहिं तावदस्ति परिणामः तस्य वस्तुस्वभावत्वेनानतिक्रमात् । ततस्तु परिणामावुपात्तकादाचित्कवैचित्र्यं, चित्रगुणयोगित्वात्परमाणोरेकाद्यकोत्तरानन्तायसानावि भागपरिच्छेदव्यापिस्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं वा भवति ॥ १६४ ॥ ― भूमिका – अब, यह बतलाते हैं कि परमाणु के वह स्निग्ध रूक्षत्व किस प्रकार का होता है अन्वयार्थ - [ अणोः ] परमाणु के [ परिणामात् ] परिणमन के कारण [ एकादि ] एक (अविभागी प्रतिच्छेद) से लेकर [ एकोत्तरं ] एक-एक बढ़ते हुये [ यावत् ] जब तक [ अनन्तत्वम् अनुभवति ] अनन्तत्व को (अनन्त अविभागी प्रतिच्छेदत्व को ) प्राप्त हो, तब तक [स्निग्धत्वं वा रूक्षत्वं ] स्निग्धत्व अथवा रुक्षत्व होता है, ऐसा [ भणितम् ] ( जिनेन्द्रदेव ने कहा है । टीका - प्रथम तो परमाणु के परिणमन होता है, क्योंकि वस्तु का स्वभाव होने से, उसका (परिणमन का ) उल्लंघन नहीं किया जा सकता । उस परिणमन के कारण जो क्षणिक विविधता धारण करता है ऐसा, एक से लेकर एक-एक बढ़ते हुए अनन्त अविभागीप्रतिच्छेदों तक व्याप्त होने वाला स्निग्धत्व अथवा रूक्षत्व परमाणु के होता है, क्योंकि परमाणु अनेक प्रकार के गुणों वाला है ॥१६४॥। १. अणुदि ( ज० वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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