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________________ ३८२ ] [ पवयण सारो __उत्थानिका-पूर्व में कहे प्रमाण आत्मा का नर, नारक आदि पर्यायों के साथ भिन्नता का ज्ञान तो हुआ, अब उनके संयोग का कारण कहते हैं-- अन्वय सहित विशेषार्थ--(अप्पा) आत्मा (जवओगप्पा) उपयोग स्वरूप है, (उपओगो) उपयोग (णाणसणं) ज्ञानदर्शन (भणिवो) कहा गया है। (सो हि अपणो उबओगो) यही आत्मा का उपयोग (सुहो वा असुहो) शुभ या अशुभ (हवदि) होता है। चैतन्य का अनुसरण करने वाला जो कोई परिणाम है, उसको उपयोग कहते हैं उस उपयोगमयी यह आत्मा है । वह उपयोग विकल्प-सहित ज्ञान विकल्प-रहित वर्शन होता है, ऐसा कहा गया है। वही ज्ञानदर्शनोपयोग जब धर्मानुरागरूप होता है तब शुभ है और जब विषयानुरागरूप होता है व द्वेष मोहरूप होता है तब अशुभ है । गाथा में 'वा' शब्द से शुभ अशुभ अनुराग से रहित शुद्ध उपयोग भी होता है ऐसा तीन प्रकार आत्मा का उपयोग होता है ॥१५॥ अथात्र क उपयोगः परद्रव्यसंयोगकारणमित्यावेदयति-- उवओगो जदि हि सुहो पुण्णं जीवस्स संचयं जादि । असुहो वा तध' पावं तेसिमभावे ण चयमत्यि ॥१५६।। उपयोगो यदि हि शुभः पुण्यं जीवस्थ संचयं याति। अशुभो बा तथा पापं तयोरभावे न चयोऽस्ति ॥१५६।। उपयोगो हि जीवस्य परद्रयसंयोगकारणमशुद्धः। स तु विशुद्धिसंक्लेशरूपोपरागवशात् शुभाशुभत्वेनोपात्तद्वविध्यः । पुण्य पापत्वेनोपात्तद्वैविध्यस्य परद्रव्यस्य संयोगकारणत्वेन निर्वर्तयति । यदा तु द्विविधस्याप्यस्याशुद्धस्याभावः क्रियते तदा खलपयोगः शुद्ध एवावतिष्ठते । स पुनरकारणमेव परद्रव्यसंयोगस्य ॥१५६।। भूमिका--अब, यह बतलाते हैं कि इसमें कौन सा उपयोग परद्रध्य के संयोग का कारण है-- अन्वयार्थ-[उपयोग:] उपयोग [यदि हि] यदि [शुभ:] शुभ हो तो [जीवस्य] जीव के [पुण्यं] पुण्य [संचयं याति ] संचय को प्राप्त होता है, [तथा वा अशुभः] और यदि अशुभ हो तो [पापं] पाप संचय होता है । [तयोः अभावे] उन (शुभाशुभ) दोनों के अभाव में [चयः नास्ति] संचय नहीं होता। टीका--जीव का परद्रव्य के संयोग का कारण अशुद्ध उपयोग है। यह, विशद्धि तथा संक्लेशरूप उपराग के कारण शुभ और अशुभ रूप से द्विविधता को प्राप्त होता १. तह (ज० वृ०)।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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