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________________ पक्यणसारो । । ३४६ इसलिये एक समय अंश रहित है । अर्थात् समय सबसे छोटा काल है। इस तरह वर्तमान समय कहा गया । अब आगे पीछे के समयों को कहते हैं कि इस पूर्व में कहे हुए वर्तमान समय से आगे कोई समय होगा तथा पूर्व में कोई समय हो चुका है इस प्रकार अतीत, अनागत, वर्तमान रूप से तीन प्रकार व्यवहार काल कहा जाता है । इन तीन प्रकार समयों में जो कोई वर्तमान का समय है वह उत्पन्न होकर नाश होने वाला है अतीत और अनागत संख्यात, असंख्यात और अनन्त समय हैं। इस तरह स्वरूप के धारी काल के होते हुए भी यह जीव अपने परमात्म-तत्व को नहीं प्राप्त करता हुआ भूत की अपेक्षा अनन्त काल से इस संसार समुद्र में भ्रमता चला आया है इसलिये हो अब इसके लिये अपना ही परमात्म तत्व सर्व तरह से ग्रहण करने योग्य मानकर श्रद्धान करने योग्य है, व स्वसंवेदन ज्ञान से जानने योग्य है तथा आहार, भय, मैथन, परिग्रह संज्ञा को आदि लेकर सर्व रागादि भावों को त्याग कर ध्यान करने योग्य है, ऐसा तात्पर्य है ॥१३॥ इस तरह काल के व्याख्यान को मुख्यता से छठे स्थल में दो गाथाएं पूर्ण हुई। अथाकाशस्य प्रदेशलक्षणं सूत्रयति-- 'आगासमणुणिविट्ठ आगासपदेससण्णया भणिदं । सम्वेसि च अणूणं सक्कदि तं देदुमवगासं ॥१४०॥ आकाशमणु निविष्टमाकाशप्रदेशसजया भणितम् । सर्वेषां चाणूनां शक्नोति तदातुमवकाशम् ।।१४०।। आकाशस्यकाणुच्याप्योंऽशः किलाकाशप्रदेशः, स खल्वेकोऽपि शेषपंचद्रव्यप्रदेशानां परमसौम्यपरिणतानन्तपरमाणु स्कन्धानां चावकाशवानसमर्थः । अस्ति चाविभागैकद्रव्यत्वेऽप्यंशकल्पनमाकाशस्य, सर्वेषामणूनामवकाशदानस्यान्यथानुपपत्तेः। यरि पुनराकाशस्यांशा न स्युरिति मतिस्तवाङ्गुलीयुगलं नभसि प्रसार्य निरूप्यता किमेक क्षेत्रं किमनेकम् ? एक चेत्किमभिन्नाशाविभागकन्तव्यत्वेन किं वा भिन्नांशाविभागकद्रव्यत्वेन ? अभिन्नांशाविभागैकद्रव्यत्वेन चेत् येनांशेनेकस्या अडगुलेः क्षेत्रं तेनांशेनेतरस्या ? इत्यन्यतरांशाभावः। एवं द्वयायशानामभाषादाकाशस्य परमाणोरिव प्रवेशमात्रत्वम् । भिन्नांशाविभागकद्रव्यत्वेन चेत् अविभागकद्रव्यस्यांशकल्पनमायातम् । अनेक चेत कि सविभागानेकद्रव्यत्वेन कि वाऽविभागकद्रव्यत्वेन ? सविभागानेकद्रव्यत्वेन चेत् एकद्रव्यस्याकाशस्यानन्तव्यत्वं, अविभागकद्रव्यत्वेन चेत् अविभागकद्रव्यस्यांशकल्पनमायातम् ॥१४॥ १. आयासमणुणिविट्ठ (ज० वृ०) । २. आयासपदेशसणणया (ज० बृ.) । ३. भणिय (ज० वृ०) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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