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________________ ३४८ ] । पश्यणसारो अन्वय रूप से बराबर चला आ रहा है व आगामी काल में होने वाली समय पर्यायों में अन्वय रूप से बराबर चला जायगा वह कालद्रव्य नामा पदार्थ है। यद्यपि यह समय पर्याय पूर्वकाल की और उत्तरकाल को समयों की संतान की अपेक्षा संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त समय रूप है तथापि वर्तमान काल का समय उत्पन्न होकर नाश होने वाला है, किन्तु जो पूर्व में कहा हुआ द्रव्यकाल है वह तीनों कालों में स्थायी होने से नित्य है इस तरह कालद्रव्य को पर्याय स्वरूप और व्यस्वरूप जानना योग्य है। तात्पर्यवृत्ति अथवानेन गाथाद्वयेन समयरूपव्यवहारकालव्याख्यानं क्रियते निश्चयकालव्याख्यानं तु 'उप्पादो पाद्धंसो' इत्यादि गाथात्रयेणाग्रे करोति । तद्यथा समओ परमार्थकालस्य पर्यायभूतसमयः । अवपदेसो अपगतप्रदेशो द्वितीयादिप्रदेशरहितो निरंश इत्यर्थः । कथं निरंश इति चेत् ? पदेसमेत्तस्स दवियजादस्स प्रदेशमात्रपुद्गलद्रव्यस्य सम्बन्धी यो सौ परमाणु: वदिवावादो यदि व्यतिपातात् मन्दगतिगमनात्सकाशात्स परमाणुस्तावदगमनरूपेण वर्तते। कं प्रति ? पदेसमागासदवियस्स विवक्षितकाकाशप्रदेश प्रति । इति प्रथमगाथाव्याख्यानम् । वविवददो तं देसं स परमाणुस्तमाकाशप्रदेशं यदा व्यतिपतितोऽतिक्रान्तो भवति तस्सम समओ तेन पुद्गलपरमाणुमन्दगतिगमनेन समः समान: समयो भवतीति निरंशत्वमिति बर्तमानसमयो व्याख्यातः । इदानीं पूर्वपरसमयी कथयति-तदो परो पुच्चो तस्मात्पूर्वोक्तवर्तमानसमयात्परो भावी कोपि समयो भविष्यति पूर्वमपि कोऽपि गतः अत्थो जो एवं यः समय त्रयरूपोऽर्थः सो कालो सोऽतीतानागतवर्तमानरूपेण त्रिविधव्यवहारकालो भण्यते । समओ उप्पण्णपद्धंसी तेषु त्रिषु मध्ये योसो वर्तमानः स उत्पन्न प्रध्वंसी अतीतानागतौ तु संख्येयासंख्येयानन्तसमयावित्यर्थः । एवमुक्तलक्षणे काले विद्यमानेऽपि परमात्मतत्त्वमलभमानोऽतीतानन्तकाले संसारसागरे भ्रमितोऽयं जीवो यतस्ततः कारणातदेव निजपरमात्मतत्त्वं सर्वप्रकारोपादेयरूपेण श्रद्धेयं, स्वसंवेदनज्ञानरूपेण ज्ञातव्यमाहारभयमथुनपरिग्रहसंज्ञास्वरूपप्रभृतिसमस्तरागादिविभावत्यागेन ध्येयमिति तात्पर्यम् ।।१३६॥ एवं कालव्याख्यानमुख्यत्वेन षष्ठस्थले गाथाद्वयं गतम् । उत्थानिका-अथवा इन दो गाथाओं से समयरूप व्यवहार काल का व्याख्यान किया जाता है । निश्चय काल का व्याख्यान तो "उप्यादी पद्धंसो" इत्यादि तीन गाथाओं से आगे करेंगे। अन्वय सहित विशेषार्थ-सो इस तरह पर है कि द्वितीयादि प्रदेश रहित निरंश प्रवेशमात्र पुद्गल द्रव्यरूप परमाणु को मंदगति से किसी विवक्षित एक आकाश के प्रदेश पर जाते हुए जो वर्तन करती है वह निश्चय काल को समय पर्याय अंश रहित है। यह पहलो गाथा का व्याख्यान है। वह परमाणु उस आकाश के प्रदेश पर जब पतन करता है तब उस पुद्गल परमाणु के मन्द गति से गमन में जो काल लगा है उसी के समान समय है
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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