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________________ पवयणसारो ] [ ३४७ जैसे अनन्त परमाणुओं का कोई स्कंध आकाश के एक प्रदेश में समाकर परिमाण में एक परमाणु जितना ही होता है, सो वह परमाणुओं के विशेष प्रकार के अवगाह परिनाम के कारण ही है, (परमाणुओं में ऐसी ही कोई विशिष्ट प्रकार की अवगाह परिणाम की शक्ति है, जिसके कारण ऐसा होता है) इससे कहीं परमाणु के अनन्त अंश नहीं होते, इसी प्रकार कोई परमाणु एक समय में असंख्य कालाणुओं को उल्लंघन करके लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच जाता है, सो वह परमाणु के विशेष प्रकार के गतिपरिणाम के कारण ही है, (परमाणु में ऐसी ही कोई विशिष्ट प्रकार के गतिपरिणाम की शक्ति है, जिसके कारण ऐसा होता है) इससे कहीं 'समय' के असंख्य अंश नहीं होते ॥ १३६ ॥ तात्पर्यवृत्ति अथ पूर्वोक्तकालपदार्थस्य पर्यायस्वरूपं द्रव्यस्वरूपं च प्रतिपादयति विददो तस्य पूर्वसूत्रोदितपुद्गल परमाणोर्व्यतिपततो मन्दगत्या गच्छतः । कं कर्मतापत्रम् ? तं देतं तं पूर्वगथोदितं कालानुव्याप्तमाकाशप्रदेशम् तस्सम तेन कालाणुव्याप्त क प्रदेश पुद्गलपरमाणुमन्दगतिगमनेन समः समानः सदृशस्तत्समः समओ कालागुद्रव्यस्य सूक्ष्मपर्यायभूतः समयो व्यवहारकालो भवतीति पर्यायव्याख्यानं गतम् । तदो परी पुग्यो तस्मात्पूर्वोक्तसमय रूप कालपर्यायात्परो भावि काले पूर्वमतीतकाले च जो अत्यो यः पूर्वपर्यायेष्वन्वयरूपेण वृत्तपदार्थों द्रव्यं सो फालो स कालः कालपदार्थो भवतीति द्रव्यव्याख्यानम् । समओ उप्पण्णपद्धंसी स पूर्वोक्तसमयपर्यायो यद्यपि पूर्वापरसमय सन्तानापेक्षया संख्येया संख्येयानन्तसमयो भवति, तथापि वर्त्तमानसमयं प्रत्युत्पन्नप्रध्वंसी । यस्तु पूर्वोक्तद्रव्यकालः स त्रिकालस्थायित्वेन नित्य इति । एवं कालस्य पर्यायस्वरूपं द्रव्यस्वरूपं च ज्ञातव्यम् ॥ उत्थानिक- आगे पूर्व कहे हुए काल पदार्थ के पर्याय स्वरूप को और द्रव्य स्वरूप को बताते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ - ( तं देतं ) उस कालाणु से व्याप्त आकाश के प्रदेश पर ( विवददो ) मंद गति से जाने वाले पुद्गल परमाणु को ( तस्सम समओ) जो कुछ काल लगता है उसी के समान समय पर्याय है । (तदो परो पुब्वी जो अत्यो ) इस समय पर्याय के आगे और पहले जो पदार्थ है ( सो कालो ) यह काल द्रव्य है । ( समओ उप्पण्णपद्धंसी) समय पर्याय उत्पन्न होकर नाश होने वाली है। जब तक एक पुद्गल का परमाणु मंदगति से एक कालाणु व्याप्त आकाश के प्रदेश से दूसरे कालाणु व्याप्त आकाश के प्रदेश पर आता है तब तक उसमें जो काल लगता है उसी के समान कालाणु द्रव्य की सूक्ष्म समय नाम की पर्याय होती है-यही व्यवहारकाल है । कालद्रव्य की पर्याय का यह स्वरूप कहा गया। इस समय पर्याय के उत्पन्न होने के पहले जो अपनी पूर्व पूर्व समय पर्यायों में
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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