________________
३४६ ]
[ पवयणसारो
अब काल पदार्थ के द्रव्य पर्याय को बतलाते हैं
अन्वयार्थ - [ तं देशं व्यतिपततः ] परमाणु एक आकाश प्रदेश को (मन्दगति से ) ( जब ) उल्लंघन करता है तब [ तत्समः ] उसके बराबर जो काल ( लगता है) वह [ समय: ] 'समय' (पर्याय) है, [ततः पूर्वः परः ] उस ( समय ) से पूर्व तथा पश्चात् ऐसा (नित्य) [यः अर्थः ] जो पदार्थ है [ सः कालः ] वह कालद्रव्य है, [ समयः उत्पन्नप्रध्वंसी ] समय उत्पन्नध्वंसी है, ) समय पर्याय तो उत्पन्न होती है और नाश होती है | )
टीका – किसी प्रदेशमात्र काल पदार्थ के द्वारा आकाश का जो प्रवेश व्याप्त हो, उस प्रदेश को जब परमाणु मन्दगति से उल्लंघन करता है, तब उस प्रदेश मात्र अतिक्रमण ( उल्लंघन ) के परिमाण (काल) के बराबर जो काल पदार्थ की सूक्ष्मवृत्ति ( परिणति ) रूप 'समय' है, वह उस काल पदार्थ की पर्याय है और ऐसी उस पर्याय से पूर्व की तथा बाद की वृत्ति रूप से वर्तित होने से जिसका नित्यत्व प्रगट होता है, ऐसा पदार्थ द्रव्य है । इस प्रकार द्रव्य समय ( कालद्रव्य ) अनुत्पन्न - अविनष्ट है और पर्यायसमय उत्पन्नध्वंसी है। यह समय निरंश है, क्योंकि यदि ऐसा न हो तो आकाश के प्रदेश का निरंशत्व न बने । एक समय में परमाणु के लोक के अन्त तक जाने पर भी समय के अंश नहीं होते, क्योंकि ( परमाणु के ) विशिष्ट (विशेष प्रकार के ) अवगाह परिणाम विशिष्ट गतिपरिणाम होता है । इसे समझाते हैं—जैसे विशिष्ट अवगाहपरिणाम के कारण एक परमाणु के परिमाण के बराबर अनन्त परमाणुओं का स्कंध बनता है तथापि यह स्कंध परमाणु के अनन्त अंशों को सिद्ध नहीं करता, क्योंकि परमाणु निरंश है, उसी प्रकार जैसे एक काला से व्याप्त एक आकाश प्रदेश के अतिक्रमण के माप के बराबर एक 'समय' में परमाणु विशिष्टगति परिणाम के कारण लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक जाता है तब ( उस परमाणु के द्वारा उल्लंघित होने वाले ) असंख्य कालाणु 'समय' के असंख्य अंशों को सिद्ध नहीं करते, क्योंकि 'समय' निरंश है ।
भावार्थ - यहां प्रश्न होता है कि "जब पुद्गल परमाणु शीघ्र 'समय' में लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच जाता है तब वह आकाश प्रवेशों में श्रेणीबद्ध जितने कालाणु हैं उन सबको स्पर्श करता है कालाओं को स्पर्श करने से 'समय' के असंख्य अंश होने चाहियें" ? यह है
।
गति के द्वारा एक
चौदह राजू लक
इसलिये असंख्य इसका समाधान