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________________ पवयणसारो । [ ३४५ अन्वय सहित विशेषार्थ-(समओ दु अप्पदेसो) काल द्रव्य निश्चय से अप्रदेशी है (सो) वह काल द्रव्य (पदेसमेत्तस्स बच्चजास्स) प्रदेश मात्र पुद्गल द्रव्यरूप परमाणु के (आगासदत्वस्स पदेस) आकाश द्रव्य के प्रदेश को (वदिवदवो) उल्लंघन करने से (वट्टदि) वर्तन करता है। ___समय नामा पर्याय का उपादान कारण कालाणु है इससे कालाणु को समय कहते हैं। वह कालाणु दो तीन आदि प्रदेशों से रहित मात्र एक प्रदेश वाला है इससे उसको अप्रवेशी कहते हैं। वह कालाण पुदगल द्रव्य की परमाणु की गति की परिणति रूप सहकारी कारण से वर्तन करता है। हर एक कालाणु से हर एक लोकाकाश का प्रदेश व्याप्त है। जब एक परमाणु मंदगति से ऐसे पास वाले प्रदेश पर जाता है तब इसकी गति की सहायता से कालद्रव्य वर्तन करता हुआ लमय पर्याय को उत्पन्न करता है। जैसे स्निग्ध रुक्ष गुण के निमित्त से पुद्गल के परमाणुओं का परस्पर बन्ध हो जाता है इस तरह का बंध कालाणुओं का कभी नहीं हो सकता इसलिये कालाणु को अप्रदेशी कहते हैं। यहां यह भाव है कि पुदगल परमाणु का एक प्रदेश तक गमन होना ही सहकारी कारण है, अधिक दूर तक मा सहकार का नहीं हारे लोकान होता है कि कालाणु द्रव्य एक प्रदेश रूप ही है ॥१३८॥ अथ कालपदार्थस्य द्रव्यपर्यायौ प्रज्ञापयति वदिवददो तं देसं तस्सम समओ तदो परो पुवो। जो अत्थो सो कालो समओ उप्पण्णपद्धंसी ॥१३६॥ व्यतिपततस्तं देशं तत्समः समयस्ततः परः पूर्वः ।। योऽर्थः स काल: समय उत्पन्न प्रध्वंसी ।।१३।। यो हि येन प्रदेशमात्रेण कालपदार्थेनाकाशस्य प्रदेशोऽभिव्याप्तस्तं प्रदेश मन्वगत्यातिक्रमतः परमाणोस्तत्प्रदेशमाअातिक्रमणपरिमाणेन तेन समो यः कालपदार्थसूक्ष्मवत्तिरूपसमयः स तस्य कालपदार्थस्य पर्यायस्ततः एवंविधात्पर्यायात्पूर्वोत्तरवृत्तिवृत्तत्वेन व्यञ्जितनित्यत्वे योऽर्थः तत्तु द्रव्यम् । एवमनुत्पन्नाविध्वस्तो द्रव्यसमयः, उत्पन्न प्रध्वंसी पर्यायसमयः । अनंशः समयोऽयमाकाशप्रदेशस्यानंशत्वान्यथानुपपत्तेः । न चैकसमयेन परमाणो. रालोकान्तगमनेऽपि समयस्य सांशत्वं विशिष्टगतिपरिणामाद्विशिष्टावगाहपरिणामवत् । तथाहि—यथा विशिष्टायगाहपरिणामावेकपरमाणुपरिमाणोऽनन्तपरमाणुस्कन्धः परमापोरनंशत्वात् पुनरप्पनन्तांशत्वं न साधयति तथा विशिष्टगतिपरिणामादककालाणुध्याप्काफाशप्रदेशातिक्रमणपरिमाणावच्छिन्नेनैकसमयेनैकस्माल्लोकान्ताद्वितीयं लोकान्तमाकामतः परमाणोरसंख्येयाः कालाणवः समयस्यानंशत्वावसंख्येयांशत्वं न साधयन्ति ।।१३६॥
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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