SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पवयणसारो ] [ ३४३ भणिवो तेन परमाणुना प्रदेशस्योद्भव उत्पत्ति भणिता | परमाणुब्याप्तक्षेत्र प्रदेशो भवति । तदये विस्तरेण कथयति इह तु सूचितमेव ॥१३७।। एवं पञ्चमस्थल स्वतन्त्रगाथाद्वयं गतम् । उत्थानिका-जैसे एक परमाणु से व्याप्त क्षेत्र को आकाश का प्रदेश कहते हैं वैसे ही अन्य द्रव्यों के प्रदेश भी होते हैं, ऐसा कहते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ-(जह) जैसे (ते णहप्पदेसा) वह परमाणु से व्याप्त क्षेत्र आकाश द्रव्य का प्रदेश होता है (तहप्परेसा सेसाणां हवंति) तैसे ही धर्मादि अन्य तथ्यों के प्रदेश होते हैं। (परमाणु अपदेसो) एक अविभागी पुद्गल परमाणु अप्रदेशी है (तेण) उस परमाणु से (पदेसुब्भयो भणिदो) प्रदेश की प्रगटता होती है। एक परमाणु जितने आकाश क्षेत्र को रोकता है उसको प्रदेश कहते हैं उस परमाणु के दो आदि प्रदेश नहीं हैं। इस प्रदेश की माप से आकाशद्रव्य को तरह शुद्ध बुद्ध एक स्वभाव परमात्म द्रव्य को आदि लेकर शेष ध्यों के भी प्रदेश होते हैं। इनका विस्तार से कथन आगे करेगे ॥१३७॥ इस तरह पांचवें स्थल में स्वतन्त्र दो गाथाएं गई। अथ कालाणेरप्रदेशत्वमेवेति नियमयति समओ दु अप्पदेसो पदेसमेत्तस्स दवजावस्स । वदिववदो सो वट्टदि पदेसमागासदव्वस्स ॥१३८॥ समयस्त्वप्रदेशः प्रदेशमात्रस्य द्रव्यजातस्य । व्यतिपततः स वर्तते प्रदेशमाकाशद्रव्यस्य ।।१३८॥ अप्रदेश एव समयो द्रव्येण प्रदेशमात्रत्वात् न च तस्य पुद्गलस्येव पर्यायेणाप्यनेकप्रदेशत्वं यतस्तस्य निरन्तरं प्रस्तारविस्तृतप्रदेशमात्रासंख्येयद्व्यत्वेपि परस्परसंपर्कासंभवादेकंकमाकाशप्रदेशमभिव्याप्य तस्थुषः प्रदेशमात्रस्य परमाणोस्तदभिव्याप्तमेकमाकाशप्रदेश मन्दगत्या व्यतिपतत एव वृत्तिः ॥१३॥ भूमिका-अब, यह नियम बतलाते हैं कि 'कालाणुके अप्रदेशत्व हो है'-~ अन्वयार्थ—[समयः तु] काल तो [अप्रदेशः] अप्रदेशी (एक प्रदेशी) है, [प्रदेशमात्रस्य द्रव्यजातस्य] प्रदेशमात्र पुद्गल-परमाणु [अकाशद्रव्यस्य प्रदेशं] आकाश द्रव्य के प्रदेश को [व्यतिपततः] मंदगति से उल्लंघन कर रहा हो तब [सः वर्तते] वह (काल) वर्तता है, अर्थात् निमित्तभूततया परिणमित होता है।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy