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________________ पवयणसारो ] [ ३४१ हैं, तैसे सर्व पदार्थ यद्यपि निश्चय से अपने स्वरूप में ठहरते हैं तथापि व्यवहारनय से लोकाकाश में ठहरते हैं। यहां यद्यपि अनन्त जीव द्रव्यों से अनन्तगुणे पुद्गल हैं तथापि एक दीप के प्रकाश में जैसे बहुत से दीपकों के प्रकाश समा जाते हैं तंसे विशेष अवगाहना की शक्ति के योग से असंख्यात प्रदेशी लोक में ही सर्व द्रव्यों का स्थान विरोधरूप नहीं है ॥ १३६ ॥ अथ प्रवेशवत्त्वाप्रदेश वत्स्वसंभवप्रकारमा मूत्रयति- जध' ते णभप्पदेसा' तधप्पदेसार हवंति सेसाणं । अपदेसी परमाणू तेग व भणिदो ॥१३७॥ यथा ते नभः प्रदेशास्तथा प्रदेशा भवन्ति शेषाणाम् । अप्रदेशः परमाणुस्तेन प्रदेशोद्भवो भणितः ॥ १३७॥ सूत्रयिष्यते हि स्वयमाकाशस्य प्रदेशलक्षण मेकाणुव्याप्यत्वमिति । इह तु यथाकाशस्य प्रवेशास्तथा शेषद्रव्याणामिति प्रदेशलक्षणप्रकारकत्वमा सृश्यते । ततो यथैकाव्याप्येनांशेन गण्यमानस्याकाशस्यानन्तांशत्वादनन्तप्रदेशत्वं तथैकाणुय्याप्येनांशेन गण्यमानानां धर्माधर्मेकजीवानामसंख्येयांशत्यात् प्रत्येकम संख्येय प्रदेशत्वम् । यथा चावस्थित प्रमाणयोर्धर्माधर्म योस्तथा संवर्तविस्ताराभ्यामनवस्थितप्रमाणस्यापि शुकार्द्रत्वाभ्यां चर्मण इव जीवस्थ स्वांशाल्पबहुत्वाभावावसंख्येयप्रदेशत्वमेव । अमूर्त संवर्त विस्तारसिद्धिश्च स्थूलकृशशिशुकुभारशरीरथ्यापित्वादस्ति स्वसंवेदनसाध्यैव । पुद्गलस्य तु द्रव्येणैकप्रवेशमात्रत्वादप्रदेशत्ये यथोदिते सत्यपि द्विप्रदेश। द्युद्भवहेतु भूततथाविध स्निग्धरूक्षगुणपरिणामशक्तिस्वभावात्प्रदेशोयत्वमस्ति । ततः पर्यायेणानेकप्रदेशत्वस्यापि संभवात् द्वयादिसंख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशत्वमपि न्याय्यं पुद्गलस्य ॥१३७॥ । भूमिका - अब, यह कहते हैं कि प्रदेशयत्व और अप्रवेशवत्त्व किस प्रकार से संभव है अन्वयार्थः -- [ यथा ] जैसे [ते नभः प्रदेशाः ] वे आकाश के प्रदेश हैं [ तथा ] उसी प्रकार [शेषाणां ] शेष द्रव्यों के ( भी ) [ प्रदेशाः भवन्ति ] प्रदेश हैं । ( अर्थात् जैसे आकाश के प्रदेश परमाणुरूपी गज से नापे जाते हैं, उसी प्रकार शेष द्रव्यों के प्रदेश भी परमाणुरूपी गज से नापे जाते हैं । [ परमाणुः ] परमाणु [अप्रदेश: ] अप्रदेशी हैं, [तेन ] उसके द्वारा [ प्रदेशोद्भवः भणित: | प्रदेशों का होना कहा है । १. जह ( ज ० वृ० ) २. हृष्पदेसा ( ज० वृ७ ) ३. तहुप्पदेसा (ज० वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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