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________________ ३२४ [ पवयणसारी अन्वय सहित विशेषार्थ-(लोगस्स) इस छह ब्रव्यमयी लोक के (उप्पाददिदिभंगा) उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूपी अर्थपर्याय होते हैं तथा (पोग्गलजीवप्पगस्स) पुद्गल और जीवमयो लोक के अर्थात् पुद्गल और जीवों के (परिणाम) व्यंजन पर्यायरूप परिणमन भी (संधादादो) संघात से (ब) या (भेदादो) भेद से (जायदि) होते हैं। यह लोक छह द्रव्यमयो है । इन सब द्रव्यों में सत्पना होने से समय-समय उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप परिणमन हुआ करते हैं इनकी अर्थ-पयांय कहते हैं। जीव और पुद्गलों में केवल अर्थ-पर्याय ही नहीं होती किन्तु संघात या भेद से ध्यंजन पर्याय भी होती हैं। अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल की मुख्यता से एक समयवर्ती अर्थ-पर्यायें ही होती हैं तथा जीव और पुद्गलों के अर्थ-पर्याय और व्यंजन-पर्याय बोनों होती हैं। किस तरह होती हैं, सो कहते हैं, सो समयसमय परिणमन रूप अवस्था है उसको अर्थ-पर्याय कहते हैं। जब यह जीव इस शरीर को त्यागकर भवान्तर शरीर के साथ मिलाप करता है तब विभाव व्यंजनपर्याय होती है। इसी ही कारण से कि यह जीव एक जन्म से दूसरे जन्म में जाता है इसको क्रियावान् कहते हैं । तैसे ही पुद्गलों की भी व्यंजन-पर्याय होती हैं। जब कोई विशेष स्कंध से छूट कर एक पुद्गल अपने क्रियावानपने से दूसरे स्कंध में मिल जाता है तब विभाव ध्यंजनपर्याय होती है । मुक्त जीवों के स्वभाव व्यंजनपर्याय किस तरह होती है सो कहते हैं । निश्चयरत्नत्रयमयी परम कारण-समयसाररूप निश्चयमोक्षमार्ग के बल से अयोष केवली गुणस्थान के अंत समय में नख केशों को छोड़कर परमौदारिक शरीर का विलय होता है इस तरह का नाश होते हुए केवलज्ञान आदि अनंत चतुष्टय की व्यक्तिरूप परम कार्य-समयसार रूप सिद्ध अवस्था का स्वभाव-व्यंजन-पर्यायरूप उत्पाद होता है, यह भेद से ही होता है, संघात से नहीं होता है क्योंकि मुक्तात्मा के अन्य शरीर के सम्बन्ध का अभाव है॥१२६॥ इस तरह जीव और अजीवपना, लोक और अलोकपना, सक्रिय और निष्क्रियपना को कम से कहते हुए प्रथम स्थल में तीन गाथाएं समाप्त हुई । अथ द्रव्यविशेषो गुणविशेषादिति प्रज्ञापयति लिहिं हिं दव्वं जीवमजीवं च हवदि विण्णादं । तेऽतम्भावविसिट्ठा मुत्तामुत्ता गुणा या ॥१३०॥ लिगैयद्रव्यं जीवोऽजीवश्च भवति विज्ञातम् । तेऽतद्भावविशिष्टा मूर्तामूर्ता गुणा ज्ञेयाः ।।१३०।।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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