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________________ ३२० ] [ वयणसारो एक रूप प्रकाशमान व सर्व तरह से शुद्ध केवलज्ञान तथा केवलदर्शन लक्षणधारी पदार्थों के जानने देखने के व्यापार गुण वाले शुद्धोपयोग से तथा व्यवहारनय से मतिज्ञान आदि अशुद्धोपयोग से जो वर्तन करता है इससे उपयोगमयो है । तथा पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल यह पांच द्रध्य पूर्व में कही हुई चेतना तथा उपयोग के अभाव से अजीब हैं, अचेतन हैं, ऐसा अर्थ है ॥ १२७॥ अथ लोकालोकत्व विशेषं निश्चिनोति— पोग्गलजीवणिबद्धो धम्माधम्मत्थिकायकालड्ढो । वट्टदि आगासे जो लोगो सो सव्वकाले दु ॥ १२८ ॥ पुद्गलजीवनिवद्धो धर्माधर्मास्तिकायकालाढ्यः । वर्तते आकाशे यो लोकः स सर्वकाले तु ॥ १२८ ॥ अस्ति हि द्रव्यस्य लोकालोकत्वेन विशेषविशिष्टत्वं स्वलक्षणसद्भावात् । स्वलक्षणं हि लोकस्य षड्द्रव्यसमवायात्मकत्वं अलोकस्य पुनः केवलाकाशात्मकत्वम् । तत्र सर्वद्रव्यव्यापिनि परममहत्याकाशे यत्र यावति जीवपुद्गलौ गतिस्थितिधर्माणो गतिस्थिती आस्कन्दतस्तद्गतिस्थितिनिबन्धनभूतौ च धर्माधर्मावभिव्याप्यावस्थित, सर्वद्रव्य वर्तनानिमित्तभूतश्च कालो नित्यदुर्ललितस्तत्तावदाकाशं शेषाण्यशेषाणि द्रव्याणि चेत्यमीषां समवाय आत्मत्वेन स्वलक्षणं यस्य स लोकः । यत्र यावति पुनराकाशे जीवपुद्गलयोर्गतिस्थिती न संभवतो धर्माधर्मौ नावस्थितौ न कालो दुर्ललितस्तावत्केवलमाकाशमात्मत्वेन स्वलक्षणं यस्य सोलोकः ॥ १२८ ॥ भूमिका1- अब ( द्रव्य के ) लोकालोकत्व रूप भेद का निश्चय करते हैं— अन्वयार्थ – [ आकाशे ] आकाश में [य] जो भाग [ पुद्गलजीवनिबद्धः ] पुद्गल और जीव से संयुक्त है, तथा [ धर्माधर्मास्तिकाय कालाढ्यः वर्तते ] धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, और काल से समृद्ध है, [स: ] वह [ सर्वकाले तु ] सर्वकाल में [लोकः ] लोक है । (शेष केवल आकाश अलोक है 1) टीका - वास्तव में द्रव्य के ( आकाश के ) अपने-अपने लक्षण के सद्भाव के कारण से, लोक और अलोकपने भेदरूप विशेषता है । लोक का स्वलक्षण षद्रव्यसमवायात्मकत्व ( छह द्रव्यों की समुदायरूपता) है, और अलोक का केवल आकाशात्मकत्व ( मात्र आकाश स्वरूपत्व ) है । वहां, सर्व द्रव्यों में व्याप्त होने वाले परम महान् आकाश में, जहां जितने में, गति स्थिति धर्म वाले जीव तथा पुद्गल गति, स्थिति को प्राप्त होते हैं
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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