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________________ पवयणसारो ] [ ३२१ तथा उनकी (जीव-पुद्गल को) गति, स्थिति में निमित्त भूत धर्म तथा अधर्म (द्रव्य) व्याप्त होकर रहते हैं और सर्व द्रव्यों को वर्तना में निमित्त भूत काल सदा वर्तता है, वह उतना आकाश, शेष समस्त द्रव्य उनका समुदाय जिसका स्व-रूपता से स्वलक्षण है, वह लोक है। जहां जितने भामाश में जोश न पागल की गति-मिति नहीं होती, धर्म तथा अधर्म नहीं रहते, और काल नहीं पाया जाता, उतना, केवल आकाश जिसका स्व-रूपता से स्वलक्षण है, वह अलोक है ॥१२८।। तात्पर्यवृत्ति अथ लोकालोकरूपेणाकाशपदार्थस्य द्वैविध्यमाख्याति,-- पोग्गलजीवणिबद्धो अणुस्कन्धभेदभिन्नाः पुद्गलास्तावतथैवामूर्तातीन्द्रियज्ञानमयत्वनिर्विकारपरमानन्दैकसुखमयत्वादिलक्षणा जीवाश्चत्थम्भूतजीवपुद्गलनिबद्धः संबद्धो भृतः पुद्गलजीवनिबद्धः धम्माधम्मस्थिकायकालड्दो धर्माधर्मास्तिकायौ च कालश्च धर्माधर्मास्तिकायकालास्तैराढ्यो भृतो धर्माधर्मास्तिकायकालाढ्यः जो यः एतेषां पंचानामित्वम्भूतसमुदायो राशिः समुहः वददि वर्तते । कस्मिन ? आगासे अनन्तानन्ताकाशद्रव्यस्य मध्यवर्तिनि लोकाकाशे सो लोगो स पूर्वोक्तगंचानां समुदायस्तदाधारभूतं लोकाकाशं चेति षड्द्रव्यसभुहो लोको भवति । क्व ? सव्वकाले दु सर्वकाले तु तद्वहि तमनन्तानन्ताकाशमलोक इत्यभिप्रायः ।।१२८॥ उत्थानिका-आगे लोक और अलोक के भेद से आकाश पदार्थ के दो भेद बताते हैं : अन्वय सहित विशेषार्थ-(जो) जितना क्षेत्र (आगासे) इस आकाश में (पोग्गलजीवणिबद्धो) पुद्गल और जीवों से भरा हुआ तथा (धम्माधम्मत्यिकायकालड्ढो) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और काल से भरा हुआ (बट्टदि) वर्तन करता है (सो दु) वही क्षेत्र (सक्वकाले) सदा हि (लोगो) लोक है। पुद्गल के दो भेद हैं-अणु और स्कंध तथा जोब अमूर्तिक अतीन्द्रिय ज्ञान-मयी और निविकार परमनान्द रूप एक सुखमयी आदि लक्षणों के धारी हैं इनसे जितना आकाश भरा हुआ है व जिसमें धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और काल द्रव्य भी व्यापक हैं, इस तरह जो पांचों द्रव्यों के समूह को रखता हुआ वर्तता है वह इस अनन्तानन्त आकाश के मध्य में रहने वाला लोकाकाश है। वास्तव में आकाश सहित जो इन पांच द्रव्यों का आधार है वह छः द्रव्य का समूह रूप लोक सदा ही है उसके बाहर अनन्तानन्त खाली जो आकाश है वह अलोफाकाश है, ऐसा अभिप्राय है ॥१२॥
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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