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________________ ३१८ ] [ पवयणसारो दूसरी, इस तरह “लोयालोयेसु'' इत्यादि दो सूत्रों से पांचवा स्थल है। इसके पीछे काल द्रव्य को अप्रदेशी स्थापित करते हुये पहली, समयरूप पर्याय काल है कालाणुरूप द्रच्यकाय है ऐसा कहते हुए दूसरी, इस तरह "समओ दु अप्पदेसो' इत्यादि दो गाथाओं से छठा स्थल है ! आगे प्रदेश का लक्षण कहते हुए पहली, फिर तिर्यक् प्रचय को कहते हुए दूसरी इस तरह "आयासमणिवि' इत्यादि दो सूत्रों से सातवां स्थल है। फिर कालाणु को द्रव्य काल स्थापित करते हुए "उप्पादो पन्भंसो' इत्यादि तीन गाथाओं से आठवां स्थल है इस तरह विशेष ज्ञेय के अधिकार में समुदायपातनिका है । अथ द्रव्य विशेषप्रज्ञापनं तत्र द्रव्यस्य जीवाजीवत्वविशेष निश्चिनोति दव्वं जीवमजीवं जीवो पुण चेदणोवओगमओ। पोग्गलवन्वप्पमुहं अचेवणं हदि य' अजीवं ॥१२७॥ द्रव्यं जीवोऽजीवो जीबः पुनश्चेतनोपयोगमयः । पुद्गलद्रव्यप्रमुखोऽचेतनो भवति चाजोवः ।। १२७।। __ इह हि द्रव्यमेकत्वनिबन्धनभूतं द्रव्यत्वसामान्यमनुज्झदेव तदधिरूढविशेषलक्षणसद्भावादन्योन्यव्यवच्छेदेन जीवाजीयत्वविशेषमुपढौकते । तत्र जीवस्यात्मद्रव्यमेवैका व्यक्तिः । अजीवस्य पुनः पुद्गलद्रव्यं धर्मद्रव्यमधर्मद्रव्यं कालद्रव्यमाकाशद्रव्यं चेति पञ्च व्यक्तयः । विशेषलक्षणं जीवस्य चेतनोपयोगमयत्वं, अजीवस्य पुनरचेतनत्वम् । तत्र यत्र स्वधर्मव्यापकत्वात्स्वरूपत्वेन द्योतमानयानपायिन्या भगवत्या संवित्तिरूपया चेतनया यत्परिणामलक्षणेन द्रव्यवृत्तिरूपेणोपयोगेन च निर्वृत्तत्वमवतीर्ण प्रतिभाति स जीवः । पत्र पुनरुपयोगसहचरिताया यथोदितलक्षणायाश्चेतनाया अभावाबहिरन्तश्चाचेतनत्वमवतीर्ण प्रतिभाति सोऽजीवः ॥१२७॥ भूमिका—अब, द्रव्यविशेष का प्रज्ञापन करते हैं, अर्थात् द्रव्यविशेषों को (द्रव्य के भेदों को) बतलाते हैं। उसमें (प्रथम) द्रव्य के जीवाजीयत्वरूप विशेष का निश्चय करते हैं, (अर्थात् द्रव्य के जीय और अजीब दो भेद बतलाते हैं) अन्वयार्थ-[द्रव्यं] द्रव्य [जीवः अजीवः] जीव और अजीय (ऐसे दो भेद रूप) है। [पुनः] और (उसमें) चेतनोपयोगमयः] चेतन तथा उपयोगमयी [जीव:] जीव है [च] और [पुद्गलद्रत्यप्रमुखः अचेतमः] पुद्गल आदि अनेतनद्रव्य [अजीवः भवति | अजीव हैं। १. ज वृ• गाथा में 'य पाठ नहीं है। २. अज्जीनं (ज० वृ.) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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