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________________ पवयणसारो ] [ २८३ काल है। इस तरह एक पर्याय रूप द्रव्य दूसरे रूप न होता हुआ एकपने को कैसे प्राप्त हो सकता है ? किसी भी तरह प्राप्त नहीं हो सकता। इससे यह सिद्ध हुआ कि असद्भाव उत्पाद या सत् रूप उत्पाद पूर्व पूर्व पर्याय से भिन्न होता है ॥११३॥ अथैकद्रव्यस्यान्यत्वानन्यत्वविप्रतिषेधमुद्युनोति for सव्वं बच्वं तं पञ्जयट्ठिएण पुणो । हवदि य अण्णमणवणं तक्काले तम्मयत्तादो ॥ ११४ ॥ द्रव्यार्थिकेन सर्व द्रव्यं तत्पर्यायार्थिकेन पुनः । भवति चान्यदनन्यत्तत्काले तन्मयत्वात् ॥ ११४।। सर्वस्य हि वस्तुनः सामान्यविशेषात्मकत्वात्तत्स्वरूपमुत्पश्यतां यथाक्रमं सामान्यवि - से परिच्छिन्ती किल चक्षुषी, द्रव्यार्थिक पर्यायाथिक चेति । तत्र पर्यायार्थिकमेका निमीलितं विधाय केवलोन्मीलितेन द्रध्यार्थिकेन यदावलोक्यते तथा नारकतिर्यङ्ग मनुव्यदेव सिद्ध पर्यायात्मकेषु विशेषेषु व्यवस्थितं जीव सामान्यमेकमलोकयतामवलोकितदि शेषाणां तत्सर्व जीवद्रव्यमिति प्रतिभाति । यदा तु द्रव्याथिक मेकान्तनिमीलितं केवलोन्मी तेन पर्यायार्थिकेनावलोक्यते तदा जीवद्रव्ये व्यस्थितान्नारकतिग्मनुष्य देव सिद्धत्य पर्यामकान् विशेषानने कानवलोकयतामनवलोकित सामान्यानामन्यदन्यत्प्रतिभाति, विशेषेकाले ततद्विशेषेभ्यस्तन्मयत्वेनानन्यत्वात् गणतृणपर्णदारुमयहव्यवाहवत् । यदा से उसे अपि द्रव्याधिकपर्यायार्थिके तुल्यकालोन्मीलिते विधाय तत् इतश्चावलोक्यते तदा गारकति थंड मनुष्यदेव सिद्धत्व पर्यायेषु व्यवस्थितं जीवसामान्यं जीवसामान्ये च व्यवस्थिता औरक सिग्मनुष्य देव सिद्धत्व पर्यायात्मका विशेषाश्च तुल्यकालमेवावलोक्यन्ते । तत्रंकचक्षु विलोकन मेक देशावलोकनं द्विचक्षुरवलोकनं सर्वावलोकनं । ततः सर्वावलोकने द्रव्यस्यान्यवाग्यत्वं च न विप्रतिषिध्यते ।। ११४ ।। द्रव्यस्य भूमिका – अब एक ही द्रव्य के अन्यत्व और अनन्यत्व होने में जो विरोध है, उसे करते हैं। ( अर्थात् उसमें विरोध नहीं आता, यह बतलाते हैं)अन्वयार्थ – [ द्रव्यार्थिकेन ] द्रव्यार्थिकनय से [ तत् सबै ] वह सब [ द्रव्यं ] द्रव्य है, : च] और फिर [पर्यायार्थिकेन ] पर्यायार्थिक नय से ( वह सब ) [ अन्यत् | अन्य-अन्य क्योंकि [ तत्काले तन्मयत्वात् ] उस समय ( द्रव्य, पर्यायों से ) तन्मय होने के मन्यत् ] ( द्रव्य, पर्यायों से ) अनन्य है । कारण से १. दब्येण ( ज० वृ०)। २. पज्जयठियेण (ज. वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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