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________________ पत्रयणसारो ] [ २६१ करोति, करोतीति चेतहि खपुष्पेणापि सह सत्ता कर्तृ समवायं करोतु न च तथा । तम्हा दव्वं सयं सत्ता तस्मादभेदनयेन शुद्धचैतन्य स्वरूपसतंत्र परमात्मद्रव्यं भवतीति । यथेदं परमात्मद्रव्येण सह शुद्धचेतनासत्ताया अभेदव्याख्यानं कृतं तथा सर्वेषां चेतनाचेतनद्रव्याणां स्वकीयस्वकीयसत्ता सहाभेदव्याख्यानं कर्तव्यमित्यभिप्राय: ॥१०५॥ उत्थानिका- आगे सत्ता और द्रव्य का अभेद है इस सम्बन्ध में फिर भी अन्य प्रकार से युक्ति दिखलाते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ - (जदि) यदि (सद्दत्वं ) सत्ता रूप द्रव्य (ण हवदि) नहीं होंगे तो (संद असदद्धव्वं कहं हवदि) वह द्रव्य निश्चय से असत्ता रूप होता हुआ किस तरह हो सकता है (या पुणो अण्णं हवदि) अथवा फिर वह द्रव्य सत्ता से भिन्न हो जाये, क्योंकि ये दोनों बातें नहीं हो सकतीं ( तम्हा दध्वं सयं ) सत्ता इसलिये द्रव्य स्वयं सत्ता स्वरूप है। यहाँ वृत्तिकार परमात्म द्रव्य पर घटाकर कहते हैं- यदि यह परमात्म द्रव्य परम-चैतन्य प्रकाशमयी स्वरूप से व अपने स्वरूप सत्ता के अस्तित्व गुण से सत् रूप न हों तब वह निश्चय से नहीं होता हुआ किस तरह परमात्म द्रव्य हो सके ? अर्थात् सरमात्म द्रष्य ही न होवे। यह बात प्रत्यक्ष से विरोध रूप है, क्योंकि स्वसंवेदनज्ञान से अनुभव में आता है। यदि कोई बिना विचारे ऐसा माने कि सत्ता से उसकी अपेक्षा से, यदि द्रव्य सत्ता गुण के अभाव में भी रहता है ऐसा नेपा-क्या दोष आयेंगे उसका विचार किया जाता है। यदि केवलज्ञान, साथ अवश्य रहने वाले अपने स्वरूप की सत्ता से जुदा ही द्रव्य ठहर सकता है, ऐसा 'जाये तो जब उसके स्वरूप का अस्तित्त्व नहीं है तब अपने स्वरूप की सत्ता के बिना नहीं रह सकता अर्थात् द्रव्य का ही अभाव मानना पड़ेगा । अथवा यदि ऐसा माना खा है कि अपने-अपने स्वरूप के अस्तित्व से सत्ता और द्रश्य में संज्ञा, लक्षण तथा मनादि की अपेक्षा भेद होते हुए भी प्रदेशों की अपेक्षा भिन्नता नहीं है— एकता है, तो हमको भी सम्मत है क्योंकि द्रव्य का ऐसा ही स्वरूप है । इस अवसर पर बौद्ध अनुसार कहने वाला तर्क करता है कि ऐसा मानना चाहिये कि सिद्ध पर्याय की रूप से द्रव्य उपचार मात्र है, मुख्यता से नहीं है । इसका समाधान आचार्य करते यदि सिद्ध पर्याय का उपादानकारण रूप परमात्मा द्रथ्य का अभाव होगा तो समय की सत्ता ही नहीं सम्भव है। जैसे वृक्ष के बिना फल का होना सम्भव नहीं ऐसी प्रस्ताव में नैयायिकमत के अनुसार कहने वाला कहता है कि परमात्मा द्रव्य द्रव्य जुदा है तो माना जाये तो केवलदर्शन गुणों
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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