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गाथा संख्या
विषय
पृष्ठ संख्या संयम व तप सहित होते हुए भी लौकिक व्यापारों में वर्तता है तो वह साधु लौकिक है।
६२३-२४ २७० यदि श्रमण मोक्ष चाहता है तो वह समान गुण वालों तथा अधिक गुणों वालों
की संगति करे आत्मा परिणाम स्वभाव वाला है इसलिये लौकिक संग से विकार अवश्यम्भावी है जैसे अग्गि के संग से पानी उष्ण हो जाता है। इसलिये मुमुक्ष श्रमण को समान गुण वाले व अधिक गुण वालों की सङ्गति करनी चाहिये । जल का दृष्टांत दिया है। .
६२४-२७
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पंच रत्त यथार्थ तत्व को न जानते हुए अन्यथा श्रद्धान करने वाले साधु संसारतत्व है ६२७-२८ यथार्थ तत्वों का श्रद्धानी, प्रशांतात्मा अयथाचार से रहित श्रमण चिरकाल तक संसार में नहीं रहता । यह मोक्षतत्व है। पदार्थो को भले प्रकार जानने वाले बहिरंग-अन्तरंगपरिग्रह से रहित विषयों में अनासक्त साथ ही मोक्ष के माधक हैं। मह मोक्ष कारण तत्व है। शुद्धोपयोग स्वरूप मोक्षमार्ग ही सर्व मनोरथ को सिद्ध करने वाला है
६३२-३४ श्रावक या मुनि के चारित्र से युक्त होकर जो कोई इस शास्त्र को समझता है यह थोड़े ही काल में परमात्म पद को पा लेता है आत्म द्रव्य की प्राप्ति का उपाय श्री जयसेन आचार्य द्वारा
६३७-३८ श्री जयसेन आचार्य की प्रशस्ति श्री अमृतचन्द्र आचार्य द्वारा परिशिष्ट रूप से ४७ नयों का कथन
६४०-४६ मिथ्यात्वियों के बचन किस प्रकार के होते हैं और जैनों के वचन किस प्रकार के होते हैं । एक नय से देखने पर आत्मा एकान्तात्मक तथा प्रमाण की अपेक्षा अनेकान्तात्मक है, श्री अमृतचन्द आचार्य द्वारा आत्मद्रव्य की प्राप्ति का उपाय चैतन्य की महिमा
६५०-५२