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________________ पवयणसारो ] अन्वय सहित विशेषार्थ-(मोहेण व रागेण व दोसेण वा परिणदस्स जीवस्स) मोह राग द्वेष से वर्तने वाले बहिरात्मा मिथ्यादृष्टि जीव के जो मोहादि-रहित परमात्मा के स्वरूप में परिणमन करने से दूर है (विनिहो बंधो जायदि) नाना प्रकार कर्मों का बंध उत्पन्न होता है अर्थात् शुद्धोपयोग लक्षण को रखने वाला भाव--मोक्ष है, उस भावमोक्ष के बल से जीव के प्रदेशों से कर्मों के प्रदेशों का बिल्कुल अलग हो जाना द्रव्यमोक्ष है, इस प्रकार द्रथ्य, भाष मोक्ष से विलक्षण तथा सर्व तरह से ग्रहण करने योग्य स्वाभाविक सुख से विपरीत जो नरफ आदि का दुःख उसको उदय में लाने वाला कर्म-बंध होता है (तम्हा ते संखवइवव्या) इसलिये जब राग द्वेष मोस वर्तने वाले जीव के इस तरह कर्मबंध होता है, तब रागादि से रहित शुद्ध आत्मा ध्यान बल से इन राग द्वेष मोह का भले प्रकार क्षय करना योग्य है, यह तात्पर्य है ।। अथामी अमीमिलिगरुपलभ्योद्भवन्त एव निशुम्भनीया इति विभावयति-- अछे अजधागहणं करुणाभावो य तिरियमणुएसु'। विसएसु य 'पसंगो मोहस्सेदाणि लिंगाणि ॥८॥ अर्थे अयथाग्रहणं करुणाभावश्च तिर्यकमनुजेषु। विषयेषु च प्रसङ्गो मोहस्येतानि लिङ्गानि ||८५॥ भनामयथातथ्यप्रतिपत्त्या तिर्यग्मनुष्येष प्रेक्षा]ष्वपि कारुण्यबुद्धधा च मोहमभीष्टविषयसंगेन रागमनभीष्टविषयाप्रीत्या द्वेषमिति त्रिमिलिङ्गरधिगम्य समिति संभवन्नपि विभूमिकोऽपि मोहो निहन्तव्यः ॥८॥ ____ भूमिका--अब, ये (राग, द्वेप और मोह) इन चिन्हों द्वारा पहिचान कर, उत्पन्न होते ही नष्ट करने योग्य हैं, यह प्रकट करते हैं:-- अन्वयार्थ--[अर्थे अयथाग्रहणं| पदार्थ में अन्यथा ग्रहण (पदार्थों का मिथ्यास्वरूप ग्रहण करना) [च] और [तिर्यड्मनुजेषु करुणाभावः] तियंचों मनुष्यों में करुणाभाव, [विषयेषु प्रसंगः च] तथा विषयों में प्रसंग (इष्ट विषयों में प्रीति और अनिष्ट विषयों में अप्रीति) [एतानि] ये सब [मोहस्य लिंगानि] मोह के चिन्ह हैं । टीका-पदार्थों की अयथार्थ (मिथ्या) प्रतिपत्ति (जानना श्रद्धान) से तथा जानने देखने योग्य तिर्यञ्चों, मनुष्यों में करुणाबुद्धि से मोह मिथ्यात्व को (जानकर), इष्ट विषयों की प्रीति से राग को और अनिष्ट विषयों की अप्रीति से द्वष को (जानकर) इस प्रकार १. मणुवतिरिएसु (ज. वृ०)। २. विसयेमु (जत यू०) । ३. अप्पसंगो (ज० व०) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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