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________________ पवयणसारो ] [ १४३ रूप सुख से उल्टे आकुलता के पैदा करने वाले सर्व अनिष्ट अर्थात् दुःख और अज्ञान नष्ट हो गए तथा पूर्व में कहे हुए लक्षण को रखने वाले सुख के साथ अविनाभूत-अवश्य होने वाले तीन लोक के अन्दर रहने वाले सर्व पदार्थों को एक समय में प्रकाशने वाला इष्ट ज्ञान प्राप्त हो गया, इसलिये यह जाना जाता है केवलियों के ज्ञान ही सुख है, ऐसा अभिप्राय है ॥६१॥ अथ केवलिनामेव पारमार्थिक सुखमिति श्रद्धापयति णो सद्दहति सोक्खं सुहेसु परमं त्ति विगदघादीणं । सुणिदूण ते अभब्वाभव्वा वा तं पडिच्छंति ॥६२॥ न श्रद्दधति सौख्य सुख्नेषु परममिति विगतघातिनाम् । श्रुत्वा ते अभव्या भव्या वा तत्प्रतीच्छन्ति ।।६२।।। __ इह खलु स्वभावप्रतिघातादाकुलत्वाच्च मोहनीयादिकर्मशालशालिनां सुखाभासेऽप्यपारमाथिकी सुखमिति सहिः। कलिना गवतां प्रयोगधातिकर्मणां स्वभावप्रतिघातामावादनाकुलत्वाच्च यथोदितस्य हेतोलक्षणस्य च सद्भावात्पारमार्थिकं सुखमिति श्रद्धेयम् । न किलवं येषां श्रद्धानमस्ति ते खलु मोक्षसुखसुधापानदूरयतिनो मृगतृष्णाम्मोमारमेषासम्याः पश्यन्ति । ये पुनरिदमिशनीमेव वचः प्रतीच्छन्ति ते शिवनियो भाजनं समासन्नभव्याः भवन्ति । ये तु पुरा प्रतीच्छन्ति ते तु दूरभण्या इति ॥६२॥ भूमिका—अब, केवलज्ञानियों के ही पारमार्थिक सुख है-यह श्रद्धा कराते हैं__ अन्वयार्थ-[विगतघातिनां] नष्ट हो गये हैं घातिकर्म जिनके उन केवलियों के [सुखेषु परमं] (सर्व) सुखों में उत्कृष्ट [सौख्यं] सुख है, [इति श्रुत्वा यह सुनकर [ये] जो [न श्रद्धधाति] श्रद्धान नहीं करते हैं [ते अभव्याः ] वे अभव्य हैं। [भव्या] भव्य तो तत् ] उसको (केवलियों के सर्वोत्कृष्ट सुख है, इसको) [प्रतीच्छन्ति ] स्वीकार करते हैं (उसकी श्रद्धा करते हैं)। टीका-इस लोक में निश्चय से मोहनीय-आदि-कर्मजाल-वालों के स्वभाव प्रतिघात के कारण से और आकुलता के कारण से सुखाभास होने पर भी (उस सुखामास को 'सुख' ऐसा कहने की अपारमार्थिक रूढि (लोक पति) है । नष्ट हो चुके हैं घातिकर्म जिनके और जो भगवान् हैं (बड़ी महिमा वाले हैं) ऐसे केवली मगवन्तों के, स्वभाव प्रतिघात के अभाव के कारण से और अनाकुलता के कारण से (सुख के) यथोक्त कारण का और लक्षण का सद्भाव होने से पारमाधिकसुख है, यह श्रद्धा करने योग्य हैं। जिनके
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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