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________________ १३२ ) [ पवयणसारो अयमत्राभिप्राय:-यथा सर्वप्रकारोपादेयभूतस्यानन्तसुखस्योपादानकारणभूत केवलज्ञानं युगपत्समस्तं वस्तु जानत्सत् जीवस्य सुखकारणं भवति तथेमिन्द्रियज्ञानं स्वकीयविषयेऽपि युगपत्परिज्ञानाभावात्सुखकारणं न भवति ।।५६॥ उत्थानिका--आगे यह निश्चय करते हैं कि चक्षु आदि इन्द्रियों से होने वाला ज्ञान अपने-अपने रूप रस, गंध, आदि विषयों को भी एक साथ नहीं जान सकता, इस कारण से त्यागने योग्य है। अन्वय सहित विशेषार्थ—(अक्खाणं) स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन पाँच इन्द्रियों के (फासो रसो य गंधो वण्णो सहो य) स्पर्श, रस, गन्ध वर्ण और शब्द ये पांचों ही विषय (पोग्गला होति) पुद्गलमयी हैं या पुद्गल द्रव्य हैं या मूर्तिक हैं (ते अक्खा) वे इंद्रियाँ (तेणेव) उन अपने विषयों को भी (जुगवं) एक समय में एक साथ (ण गेण्हंति) नहीं ग्रहण कर सकती हैं-नहीं जान सकती। अभिप्राय यह है कि जैसे सब तरह से ग्रहण करने योग्य अनन्तसुख का उपादानकारण जो केवलज्ञान है सोही एक समय में सब वस्तुओं को जानता हुआ जीव के लिये सुख का कारण होता है तैसे यह इन्द्रिय-ज्ञान अपने विषयों को भी एक समय में न जान सकने के कारण सुख का कारण नहीं है ॥५६॥ अथेन्द्रियज्ञानं न प्रत्यक्ष भवतीति निश्चिनोति परदवं ते अक्खा व सहावो ति अप्पणो भणिदा'। उवलद्धं तेहि कधं पच्चक्खं अप्पणो होदि ॥५७।। परद्रव्यं तान्यक्षाणि नव स्वभाव इत्यात्मनो भणितानि । उपलब्धं तैः कथं प्रत्यक्षमात्मनो भवति ।।५७॥ आत्मानमेव केवलं प्रतिनियतं केवलज्ञान प्रत्यक्षं, इदं तु व्यतिरिक्तास्तित्वयोगितया परद्रव्यतामुपगतरात्मनः स्वभावतां मनागन्यसंस्पर्शाद्धरिन्द्रियरुपलभ्योपजन्यमानं नवात्मनः प्रत्यक्षं भवितुमर्हति ॥५७॥ भूमिका-अन, इन्द्रिय-ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं होता है, यह निश्चय करते हैं: अन्वयार्थ—[तानि अक्षाणि] वे इन्द्रियाँ [परद्रव्यं ] पर द्रव्य हैं। [आत्मनः स्वभावः इति] वे आत्मा के स्वभाव रूप [न एव भणितानि] नहीं कही गई है। [तैः] उनके द्वारा [उपलब्धं] ज्ञात (जाना हुआ ज्ञान) [आत्मनः] आत्मा को [प्रत्यक्षं] प्रत्यक्ष [कथं भवति] कैसे हो सकता है ? (यानि नहीं हो सकता)। १. भणिया (ज० वृ०) । २. कहं (ज० वृ०) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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