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________________ १२४ ] । पबयणसारो भी सुख के कारण नहीं हैं, ऐसा कहते हुए 'तिमिरहरा' इत्यादि गाथाएं वो हैं, फिर सर्वज्ञ को नमस्कार करते हुए 'तेजो विट्ठि' इत्यादि सूत्र दो हैं ? इस तरह पांच अंतर अधिकार में समुदाय पातनिका है। अथ ज्ञानादभिन्नस्य सौख्यस्य स्वरूपं प्रपञ्चयन ज्ञानसौख्ययोः हेयोगदेयत्वं चिन्तयति अस्थि अमुत्तं मुत्तं अदिदियं इंदियं च अत्थेसु । णाणं च तहा सोक्खं जं तेसु परं च तं णेयं ॥५३॥ अस्त्यमूतं मूर्तमतीन्द्रियमंन्द्रियं चार्थेषु । ज्ञानञ्च तथा सौख्यं यत्तेषु परञ्च तत् ज्ञेयम् ।।५३।। __ अत्र ज्ञान सौख्यं च मूर्तमिन्द्रियजं चैकमस्ति । इतरदमृतमतीन्द्रियं चास्ति । तत्र यवमूर्तमतीन्द्रियं च तत्प्रधानत्वादुपादेयत्वेन ज्ञातव्यम् । तत्राद्यं मूर्ताभिः क्षायोपशमिकीमिरुपयोगशक्तिभिस्तथाविधेभ्य इन्द्रियेभ्यः समुत्पद्यमानं परायसत्वात् कादाचित्कत्वं, क्रमकृतप्रवृत्ति-सप्रतिपक्ष सहानिवृद्धि च गौणमिति कृत्वा ज्ञानं च सौख्यं च हेयम् । इतरत्पुनरमूर्ताभिश्चैतन्यानुविधायिनीभिरेकाकिनीभिरेवात्मपरिणामशक्तिभिस्तथाविधेभ्योऽतीन्द्रिये भ्यः स्थाभाविकचिदाकारपरिणामेभ्यः समुत्पञ्चमानमत्यन्तमात्मायत्तत्वान्नित्यं, युगपत्कृतप्रवृत्ति निःप्रतिपक्षमहानिवृद्धि च मुख्यमिति कृत्वा ज्ञानं सौख्य चोपावेयम् ॥५३॥ भूमिका--अब, ज्ञान से अभिन्न रूप सुख के स्वरूप को विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए ज्ञान और सुख को हेय-उपादेयता का विचार करते हैं ___ अन्वयार्थ-[अर्थेषु ज्ञान] पदार्थ सम्बन्धी ज्ञान [अमूर्त-मूर्त] अमूर्त या मूर्त, [अतीन्द्रियं ऐन्द्रियं च अस्ति] अतीन्द्रिय या ऐन्द्रिय होता है, [च तथा सौख्यं] और इसी प्रकार (अमूर्त या मूर्त, अतीन्द्रिय या ऐन्द्रिक) सुख होता है। [तेषु च यत परं] उन (दो प्रकार के ज्ञान-सुख) में जो (अमूर्त-अतीन्द्रिय ज्ञान-सुख) प्रधान (उत्कृष्ट) है. [तत् ज्ञेयं] बह अमूर्त-अतीन्द्रियज्ञान और सुख (उपादेयरूप) जानने योग्य है। टीका-(ज्ञान तथा सुख दो प्रकार का है उनमें से यहाँ) एक ज्ञान तथा सुख मूर्त है और इन्द्रियों से उत्पन्न होने वाला इन्द्रियज है और दूसरा (ज्ञान तथा सुख) अमूर्त है और अतीन्द्रिय है, उसमें जो अमूर्त और अतीन्द्रिय है वह प्रधान होने से उपादेय रूप से जानने योग्य है। (गाथा का अर्थ पूरा हो गया । अब इसके भाव को टीकाकार स्वयं स्पष्ट करते हैं)
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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