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________________ १२० । [ पवयणसारो अथ ज्ञानिनो ज्ञप्तिक्रियासद्भावेऽपि कियाफलभूतं बन्धं प्रतिषेधयन्नुपसंहरतिण वि परिणमदि ण गेण्हदि उप्पज्जदि व तेसु अठेसु । जाणपणवि ते आदा अबंधगो तेण पण्णत्तो ॥५२॥ नापि परिणमति न गृह्णाति उत्पद्यते नेव तेश्र्थषु । जानपि तानात्मा अनन्धकस्तेन प्रज्ञप्त: ॥५२॥ ___ इह खलु "उदयगदा कम्मंसा जिणवरवसहेहिं णियदिणा भणिया । तेसु विमूढो रत्तो दुट्ठो वा बंधमणुभवदि ॥” इत्यत्र सूत्रे उदयगतेषु पुद्गलकर्मीशेषु सत्सु संचेतयमानो मोहरागद्वेषपरिणतत्वात् ज्ञेयार्थपरिणमनलक्षणया क्रियया युज्यमानः क्रियाफलभूतं बंधमनुमवति, न तु ज्ञानादिति प्रथम मेवार्थपरिणमनक्रियाफलत्धेन बन्धस्य समर्थितत्वात् । तथा 'गेण्हदि णेव ण मुञ्चदि ण परं परिणमदि केवली भगवं । पेच्छदि समंतदो सो जाणदि सव्वं मिरवसेस ।।' इत्यर्थपरिणमनादिक्रियाणामभावस्य शुद्धात्मनो निरूपितत्याच्चार्थानपरिणमतोऽगृहृतस्तेस्वनुत्पद्यमानस्य चात्मनो ज्ञप्तिक्रियासद्भावेऽपि न खलु क्रियाफलभूतो बन्धः सिद्धयेत् ॥५२॥ भूमिका-अब ज्ञानी के (केवलज्ञानी के), ज्ञप्ति-क्रिया का सद्भाव होने पर भी, क्रिया के फल रूप बन्ध को निषेध करते हुए उपसंहार करते हैं (केवलज्ञानी आत्मा के जानने की क्रिया होने पर भी बन्ध नहीं होता, यह कहकर ज्ञान अधिकार पूर्ण करते हैं) : ___ अन्वयार्थ-[आत्मा] (केवलज्ञानी) आत्मा [तान जानन अपि] उन पदार्थों को जानता हुआ भी [ न अपि परिणमति ] उस रूप परिणत नहीं होता, [न गृह्णाति] उन्हें ग्रहण नहीं करता, [तेषु अर्थेषु न एव उत्पद्यते] और उन पदार्थों के रूप में उत्पन्न नहीं होता [तेन] इसलिये [अबन्धकः प्रज्ञप्तः] (वह) अबन्धक कहा गया है। टोका-यहां वास्तव में 'उदयगताः कर्माशाः जिनवरवृषभः नियत्या मणिताः । तेषु विमूढः रक्तः दुष्टः वा बंधमनुभवति' इस ४३वे गाथा-सूत्र में "उदयगत पुद्गल कर्माशों के विद्यमान रहने पर (उन्हें) संचेतन करता हुआ (अनुभव करता हुआ) मोह-राग-द्वेष रूप परिणमन स्वरूप क्रिया के साथ युक्त होता हमा आत्मा क्रियाफल-भूत बंध को अनुभव करता है, ज्ञान से नहीं" । इस प्रकार प्रथम ही अर्थ-परिणमन-क्रिया के फलरूप से बन्ध का समर्थन किया गया है तथा 'गृह्णाति नंब न मुचंति न परं परिणमति केवली भगवान् । पश्यति समन्ततः सः जानाति सर्व निविशेष' इस ३२वें गाथा-सूत्र में शुद्धात्मा के, अर्थ परिणमन आदि क्रियाओं का अभाव, निरूपित किया गया है। इसलिये पदार्थ रूप में
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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