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________________ पवयणसारो ] [ १०५ कर्म के उश्य से जो किया होती है वह कर्म झड़ जाता है। इसलिए उस क्रिया को क्षायिकी कह सकते हैं, ऐसा अभिप्राय है । भावार्थ- इस गाथा में भी आचार्य महाराज ने इसी बात को बतलाया है कि मिथ्यात्व व चारित्रमोह का उदय ही बन्ध का कारण है। आत्मा की भावना के बल से मिथ्यात्व और सम्यमिथ्यात्व महिला अपने कार उनम में नहीं आनी किन्तु सम्यक्त्वप्रकृति रूप (जो दर्शनमोह को प्रकृति है) संक्रमण कर उदय में आती है जिससे मोहरूप अर्थात् मिथ्यात्वरूप भाव नहीं होते। यदि मिथ्यात्व का उदय हो तो मिथ्यात्वरूप भाव है। अथ केयलिनामिय सर्वेषामपि स्वभावविधाताभावं निषेधयति-- जदि सो महो व असुहो ण हवदि आदा सयं सहावेण । संसारो वि ण 'विज्जदि सब्वेसि जीवकायाणं ॥४६॥ यदि स शुभो वा अशुभो न भवति आत्मा स्वयं स्वभावेन । संसारोऽपि न विद्यते सर्वेषां जीवकायानाम् ।।४६।। यदि खल्वेकान्तेन शुभाशुभभावस्वभावेन स्वयमात्मा न परिणमते तदा सर्ववैव सर्वथा निविधातेन शुद्धस्वभावेनैवयातिष्ठते । तथा च सर्वे एवं भूतग्रामाः समस्तबन्धसाधनशून्यत्वावाजवंजवाभावस्वभावतो नित्य-मुक्ततां प्रतिपद्येरन् । तच्च नाभ्युपगम्यते । आत्मनः परिणामधर्मस्वेन स्फटिकस्य जपातापिच्छरागस्वभाववत् शुभाशुभस्वभावत्वद्योतनात् ॥५६॥ भूमिका-अब, केलियों की तरह समस्त संसारी जीवों के भी स्वभाव-विघात होने के अभाव को निषेध करते हैं (अर्थात क्रिया सब संसारी जीयों के स्वभाव की घातक होती है, यह बताते हैं)। अन्वयार्थ- [यदि] जो (यह माना जाय कि) [स: आत्मा] वह आत्मा स्वयं] स्वयं [स्वभावेन ] स्व-भाव से (अपने भाव से) [शुभः वा अशुभ:] शुभ या अशुभ [न भवति] नहीं होता (शुभ अशुभ भाव में परिणत ही नहीं होता) तो [सर्वेषां जीवकायानां] तो समस्त जीवनिकायों के [ संसारः अपि] संसार भी [न विद्यते | विद्यमान नहीं है अर्थात् संसार ही न रहेगा (ऐसा सिद्ध होगा)। टीका-जो वास्तव में एकान्त से (यह माना जाय कि) शुभ-अशुभभाव रूप स्व-भाव से (अपने भाव से) आत्मा स्वयं परिणत नहीं होता, तब तो वह सदा ही सर्वथा निविघात शुद्ध स्वभाव से ही अवस्थित है । ऐसा होने पर, समस्त जीव समूह समस्त बन्ध १. विज्जइ (ज. वृ०)
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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