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The five Astikayas are: Jiva, Pudgala, Akasa, Dharma and Adharma. These are accepted (Sammat) because they are not created (Akrit), they exist (Astitvamya) and they are caused by the Lokas which are of various types and are their culmination. The five Astikayas are characterized by being composed of a collection of Pradeshas (Pradeshaprachayatmak). Time (Kal) is not composed of a collection of Pradeshas, therefore it is not an Astikaya. This is certain (Nischita) by inference (Samarthya). ||22||
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________________ पंचास्तिकाय प्राभृत अकृत होनेसे, अस्तित्वमय होनेसे और अनेकप्रकारकी अपनी परिणतिरूप लोकके कारण होनेसे जो स्वीकार ( संमत ) किये गये हैं ऐसे छह द्रव्योंमें जीव, पुद्गल, आकाश, धर्म और अधर्म प्रदेशप्रचयात्मक ( प्रदेशोंके समूहमय ) होनेसे वे पाँच अस्तिकाय हैं। कालको प्रदेशप्रचयात्मकपनेका अभाव होनेसे वह वास्तवमें अस्तिकाय नहीं है ऐसा ( बिना कथन किये भी) सामर्थ्यसे निश्चित होता है ।।२२।। संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा--२२ अथ कालद्रव्यप्रतिपादनमुख्यत्वेन गाथापञ्चकं कथ्यते । तत्र पंचगाथासु मध्ये षड्द्रव्यमध्याज्जीवादिपंचानामस्तिकायत्वसूचनार्थं "जीवा पोग्गलकाया" इत्यादि सूत्रमेकं, तदनन्तरं निश्चयकालकथनरूपेण “सब्भावसहावाणं" इत्यादि सूत्रद्वयं टीकाभिप्रायेण सूत्रमेकं पुनश्च समयादिव्यवहारकालमुख्यत्वेन "समओ णिमिसो” इत्यादि गाथाद्वयं एवं स्थलत्रयेण तृतीयान्तराधिकारे समुदायपातनिका । अथ सामान्योक्तलक्षणानां षण्णां द्रव्याणां यथोक्तस्मरणार्थमग्रे विशेषव्याख्यानार्थं वा पंचानामस्तिकायत्वं व्यवस्थापयति जीवा पोग्गलकाया आयासं अस्थिकाइया सेसा-जीवा: पुद्गलकाया आकाशं अस्तिकायिकी शेषौ धर्माधर्मी चेति एते पंच । कथंभूताः । अमया--अकृत्रिमा न केनापि पुरुषविशेषेण कृताः । तर्हि कथं। निष्पन्ना: । अत्थित्तमया-अस्तित्वप्रयाः स्वकीयास्तित्वेन स्वकीयसत्तया निर्वृत्ता निष्पन्ना जाता इत्यनेन पंचानामस्तित्वं निरूपितं । पुनरपि कथंभूताः । कारणभूदा दु लोगस्स-कारणभूताः । कस्व? लोकस्य "जीवादिषद्रव्याणां समवायो मेलापको लोकः" इति वचनात् । स च लोक: उत्पादव्ययध्रौव्यवान् तेनास्तित्त्वं लोक्यते, उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सदिति वचनात् । पुनरपि कथंभूतो लोकः । ऊर्ध्वाधोमध्यभागेन सांश: सावयवस्तेन कायत्वं कथितं भवतीति सूत्रार्थः ।।२२।। एवं षद्रव्यमध्याज्जीवादिपंचानामस्तिकायत्वसूचनरूप्रेण गाथा गाता। हिन्दी तात्पर्यवृत्ति गाथा-२२ उत्थानिका-आगे कालद्रव्यके कहनेकी मुख्यतासे पाँच गाथाएँ कही जाती है, इन पाँच गाथाओंके मध्यमें छः द्रव्योंमेंसे जीवादि पाँच द्रष्योंकी अस्तिकाय संज्ञा है यह बतानेके लिये 'जीवा पुग्गलकाया' इत्यादि एक सूत्र है। फिर निश्चयकालको कहते हुए 'सम्भावसहावाणं' इत्यादि सूत्र दो हैं व टीकाके अभिप्रायसे सूत्र एक है। फिर समयादि व्यवहार कालकी मुख्यतासे समओ णिमिसो, इत्यादि गाथा दो हैं। इस तरह तीन स्थूलद्वारा तीसरे अन्तर अधिकार में समुदाय पातिनका कही। अब सामान्यपने जिनका लक्षण कहचुके ऐसे छः ब्रव्याकै नाम स्मरणके लिये व उनका विशेष व्याख्यान करनेके लिये आथवा पाँच द्रव्योंके अस्तिकायपना स्थापना करनेके लिये सूत्र कहते हैं
SR No.090326
Book TitlePanchastikay
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreelal Jain Vyakaranshastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages421
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size11 MB
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