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________________ जनशासन दृष्टिसे कोई अन्तर नहीं है। जिस अंडे में बच्चा न निकले उसे ; unfertiliseel gg-निर्जीव अण्डा कहनार शाकाहारके साथ उसकी तुलना करते हैं । यह दृष्टि भ्रमपूर्ण है। अण्डेके बारेमें गहरे परीक्षणके उपरान्त एक रूमो वैज्ञानिकने कहा है | life begins in egg-अण्डेमें जीवनका आरंभ होता है (रीडर्सडाइजेस्ट) अंधेका बाल श्वेत भाग अस्थि रूप है । उसके भोप्तरका रस अनेक जीवोंसे भरा हुया है। ___यह दृष्टि अतात्विक है । मांसभक्षण क्रूरताका उत्पादक है, वह सात्विक मनोवृत्तिका संहार करता है 1 वनस्पति और मांस के स्वरूपमें महान अन्तर है । एकेन्द्रियजीव जल आदिके द्वारा अपने पोषक तत्वको ग्रहणकर उसका स्खल भाग और रस भाग रूप ही परिणमन कर गाता है । रुधिर, मांस आदि रूप आगामी पर्यायें जो अनन्त जीवोका फलेदर रूप होती है, वनस्पतिमें नहीं पायी जाती । इसलिए उनमें समानता नहीं कही जा सकती। दूसरी बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि अत्यन्त अशुद्ध शुक्र-शोणित रूप उपादानका मांस रुधिर आदिरूप शरीरके रूपमें परिणमन होता है । ऐसी घृणित उपादानता वनस्पतिमें नहीं है । बनस्पतिको पेशाशी न कहकर आधी कहा है । यह सकं ओक है कि प्राणीका अंग अन्नके समान मांस भी है; किन्तु दोनोंके स्वभाव समानता नहीं है । इसीलिए साधकके लिए अन्न भोज्य है और मांस अपवा अण्डा सदृश पदार्थ सर्वथा त्याज्य है। जैसे स्त्रीत्वकी दृष्टिसे माता और पलीमें समानता हो कही जा सकती है, किन्तु भोग्यत्वको अपेक्षा पली ही ग्राह्य कही गयी है, माला नहीं। "प्राण्यंगत्वे समेऽप्यन्नं भोज्यं मांसं न धार्मिकः । भोग्या स्त्रीत्वाविशेषेऽपि जर्जायव नाम्बिकाः ।।" --सागारधर्मामृत २०१० । यूरोपके मनीषी महात्मा टाल्सटाय ने मांस-भक्षणके विषयमें कितना प्रभावपूर्ण कथन किया है.--"क्या मांस खाना अनिवार्य है ? कुछ लोग कहते हैं-यह तो अनिवार्य नहीं है, लेकिन कुछ बातों के लिए जरूरी है। मैं कहता हूँ कि यह जारी नहीं है। मांस खाने से मनुष्यको पाशविक वृति बढ़ती है, काम उत्तेजित होता है, व्यभिचार करने और शराब पीने की इच्छा होती है । इन सब बातोंके प्रमाण सम्धे और शुद्ध सदाचारी नवयुवक, विशेष कर स्त्रियाँ और तरुण लड़कियाँ है, जो इस बातको साफ-साफ कहती है कि मांस खाने के बाद कामकी उत्तेजना और १. कन्चे अथवा पके माममें भी हिंसा दोष पाया जाता है, कारण उनमें सूक्ष्म जीवोंकी निरन्तर उत्पत्ति होती रहती है । पु० सिखयुपाय, ६७ स्वयं मरे भंसा, बैल आदिका मांस भक्षण करना भी दोषयुक्त है ? -T० ६६ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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