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________________ संयम बिन घडिय म इषक जाहु साफ रहना चाहिये । मालूम होता है ऐसे ही विचारोंका प्रतिनिधित्व करते हुए एक शायर कहता है "जाहिद शराब पीनेसे काफिर बना मैं क्यों? क्या डेढ़ चुल्ल पानीमें ईमान बह गया ?" ऐसे विचारवाले गंभीरतापूर्वक अगर सच सके, तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि सात्त्विक, गजस और नामम आहार द्वारा इसी प्रकार के भात्रोंकी उत्पत्ति में प्रेरणा प्राप्त होती है । आहारका हमारी मा स्थिति माथ गहरा सम्बन्ध है । इसी बात को यह कहावत मूचित करती है.-.. "जैसा खावे अन्न, तैसा होवे मन | जैसा पीये पानी, तैसो होवे बानी ।' इस सम्बन्धमें गांधीजीने अपनी आत्मकथा में लिखा है--''मनका शरीरके साथ निकट सम्बन्ध है । विकारयुक्त मन विकार पैदा करनेवाले भोजनकी ही खोजमें रहता है । विकृत मन नाना प्रकारके स्वादों और भौगोको हूँ देत। फिरता है; और फिर उस आहार और भोगोंका प्रभाव मनवे ऊपर पड़ता है । मेरे दनुभवने मुझे यही शिक्षा दी है कि जब मन संयमकी बोर झुकता है. तन्य भोजन की मर्यादा और उपवास सूब सहायक होते हैं । इनकी सहायता विना गन्नो निर्विकार बनाना असम्भव-सा हो मालूम होता है ।" (पृ० ११२-१३) । __ अपने राजयोगमें स्वामी विवेकानन्द लिखते हैं-"हमें उभी आहारका प्रयोग करना चाहिए, जो हमें सबसे अधिक पवित्र मन दे । हाथी आदि बड़े जानवर शान्त और नन्न गिलेंगे। सिंह और चीतकी ओर जानोगे तो वं उत्तने हो अशान्त मिलेंगे । यह अन्तर आहार भिन्नताके कारण है ।'' महाभारतमें तो यहां तक लिखा है कि-आहार-शुद्धि न रखनेवालेले तीर्थयात्रा, जप-तप आदि सब विफल हो जाते है "मद्यमांसाशनं रात्री भोजन कन्दभक्षणम् । ये पूर्वन्ति वधा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः ।। चातुर्मास्ये तु सम्प्राप्ते रात्रिभोज्यं करांति यः । तस्थ गुद्धिर्न विद्येत चान्द्रायणशतैरपि ।" कुछ लोग मांसभक्षणके समर्थन में नहस करते हुए कहने लगते हैं कि मांसभक्षण और शाकाहारमें कोई विशेष अन्तर नहीं है। जिस प्रकार प्राणघारीका अंग बनस्पति है उसी प्रकार मांस भी जीवका शारीर है । जीव-शरीरत्व दोनोंमें समान है। वे यह भी कहते है कि अण्डा-भक्षण करना और दुग्धपानमें दोषको
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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