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________________ संयम बिन पडिय म इक्क जाहु ६९ अनर पाशविक वृत्तियां अपने आप प्रबल हो जाती है।" वे यहां तक लिखते है कि "मांस खापर री बना नाम है:" मी ति तो सरिधान और महापुरुष माने जानेवाले व्यक्तिको टाल्स्टाय जैसे विचारकके मतसे निरामिपभोजी होना अत्यन्त आवश्यक है। वैज्ञानिकोंने इस विषयमें मनन करके लिखा है कि मांस आदिके द्वारा दल और निरोगता मध्यादन करतेको कल्पना ठीक वैमी ही है जैसे वायकके ओरसे सुस्त घोड़ेको तेज करना । मांसभक्षण करनेवालोंमें क्रूरताको अधिक मात्रा होती है | सहनशीलता, जितेन्द्रियता और परिश्रम-शीलता उनमें कम पायी जाती है। गि० धेरेस महाशय नामक यि धुन शास्त्रजन यह सिद्ध किया है कि फल और मेवामें एक प्रकारकी विजली भरी हुई है, जिससे शरीरका पूर्णतया पोषण होता है। 'न्ययार्क ट्रिब्यून' के गंपादक श्री होरेस लिखते हैं--"मेरा अनुभव है कि मांसाहारीफी अपेक्षा शाकाहारी दग वर्ष अधिर जी सकता है। अध्यापक लारेंसका अनुभव है-"मामाहारम शरीरकी शक्ति और हिम्मत कम होती है। यह तरह-तरहकी बीमारियों का मूल कारण है। शाकाहारका साथ निर्बलता, भीरुता तथा रोगोंका कोई सम्बन्ध नहीं है।" (मांसाहारसे हानियां' से उद्धृत)। __ मांसभक्षण न करनेवाले अहिसक महापुरुषोंने अपने पौरुष और दुद्धिचलके द्वारा इस भारत भालको मदा उन्नत रखा है । अहिंसा और पवित्रताको प्रतिमा वीर शिरोमणि जैन सम्राट चन्द्रगुप्तने सिल्यूकस जैसे प्रमल पराक्रमी मांसभक्षी सेनापतिको पराजित किया था । पराक्रमको आत्माका धर्म न मानकर शरीर सम्बन्धी विशेषता समझनेवाले ही यथेच्छाहारको ग्राह्य बसलाते हैं। शौर्य एवं पराक्रमका विकास मितेन्द्रिय और आत्म-बली में अधिक होगा | राष्ट्रके उत्थाननिमित्त जितेन्द्रियता ब्रह्मचर्य-संगठन आदि सवगणोंको जागृत करना होगा । मनुष्यताका स्वयं संहार कर हिंसक पशुवृत्तिको अपनानेवाला कैसे सापनाके पथमें प्रविष्ट हो सकता है ? ऐमे स्वार्थी और विषयलोलुपके पास दिव्य विचार और दिश्य सम्पत्तिका स्वप्न में भी उदय नहीं होता । अतएव पवित्र जीवन के लिए पवित्र आहारपान अत्यन्त आवश्यक है। उस प्राथमिक साधकको जीवनचर्या इतनी संयत हो जाती है, कि वह लोक तथा समाज के लिए भार न इन, भूषण-स्वरूप होता है । वह सूक्ष्म दोषोंका परित्याग लो नहीं कर पाता किन्तु राज अयवा समाज द्वारा दण्डनीय स्थूल पापोंसे बचता है। अपने तत्त्वज्ञान आदर्शकी नवस्मृति और नव-स्फूर्ति निमित्त वह शांत, विकार रहित, परियह विहीन, वीतरागता युक्त जिनेन्द्र भगवान्की पूजा (Hero worship) करता है। वह मूतिके माबलम्ब नसे उस शान्ति, पूर्णता
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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