________________
२८ . जेनशासन
स्व. लालाजीके अमर उद्गारों के विरुद्ध शायद कोई यह कहें कि यह तो सफल राजनीतिज्ञकी जोशभरी वाणी है, जो प्रशान्त दार्शनिक चिन्तनके विमल प्रकामा बहुत दूर है। ऐसे व्यक्यिोंको पाश्चात्य तक-विद्याके पिता अरस्तू महाशय जैसे शान्त, विषारयान् चिन्तककी निम्नलिखित पंक्तियोंको पर विचार करना चाहिए- "ईश्वर किसी भी दृष्टिसे विश्वका निर्माता नहीं है । सब अविनाशी पदार्थ परमाथिल है। सूर्य चन्द्र तथा दाममान साकाश सब सक्रिय है। ऐसा कभी नहीं होगा कि उनकी गति अवरुद्ध हो जाए । यदि हम उन्हें परमात्माके द्वारा प्रदत्त पुरस्कार मानें तो हम जमे अयोग्य न्यायाधीश अपया अन्यायो न्याय-कर्ता बना डालेंगे । यह बात परमात्माके स्वभावके दिण्ड है । जिस आमम्दकी अनुभूति परमात्माको होती है वह इतना महान है कि हम उसका कभी रसास्वादकर सकत हैं । वह आनन्द आश्चर्यप्रद है।''
ईदवर-कर्तृत्व के मम्वन्धमें अत्यन्त आम-र्षक युक्ति यह उपस्थिति की जाती है-"क्या करें, परमात्मा तो निष्पक्ष न्याय-नाता है, जिन्होंने पापकी पोटली बाँध रखी है, उनके कर्मासुमार वह दण्ड देता है । दयाकी अपेक्षा न्यायका आसन ऊंचा है।"
ऐसे व्यक्तिको सोचना चाहिए, कि अनन्तज्ञान, अनन्तशक्ति तथा अनन्त करुणापूर्ण परमपिता परमात्माके होते हुए दीन-प्राणो पापोंके संनयमें प्रवृत्ति करे उस समम तो यह प्रभु चुपचाप इस दृश्यको देखता रहे और दण्ड देनेके समय सतर्क और सावधान हो अपने भाषण न्यायास्त्रका प्रयोग करने के लिए उद्यत हो उठे। यह बढ़ी विचित्र बात है ! क्या सर्वशक्तिमान् परमात्मा अनर्थ अश्वा अनीतिके मागमें जानेवाली अपनी सन्ततिसमान जीवराशिको पहिलेसे नहीं रोक सकता ? पदि ऐसा नहीं है तो सर्वशक्तिमान् क्या अर्थ रखता है ?
even get the necessities of life. Why all this inequality ? Can this be the handiwork of a just and true God?
"Where is thy God? I find no trace of hio in this absurd world,
Lala Lajpatarai in Mahratta 1933. 1. God is in no sense the Creator of the universe. All imperish
able things are actual sen, moon, while visible hcaven is always active. There is no time that they will stop. If we attribute these gifts to God, we shall nake him either an incompetent judge or an anjust one and it is alien to his nature, Happiness which God enjoys is as great as that, which we can enjoy sometimes. It is marvellous.
-Aristotle.