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________________ २६२ जैनशासन माकरणके क्षेत्रमें जैनेन्द्र, शाकटायन, शटदार्णव. कौमार, त्रिविक्रम, चिन्तामणि प्रभृत्ति उपला भाष्यों एवं मूल अन्योंकी गणना करने पर जैन व्याकरण के लगभग तीस ग्रन्थ पा जाते हैं । पाणिनीयके साथ जनेन्द्रको सूक्ष्मदृष्टि से तुलना करने पर जैनेन्ट्रकार महषि पूज्यपादका शब्दशास्त्र पर अधिकार, मूत्ररचनापाटव, अर्थबहुलता तथा अल्पशब्दप्रयोग आदि दात समीक्षकके अन्तःकरण पर अपना स्थान बनाए बिना नहीं रह सकती । खेद इतना है, कि जिस प्रकार पाणिनीय व्याकरण के अध्ययनादि द्वारा उसका प्रचार किया जाता है, उसी प्रकार जैनेन्द्र व्याकरण के प्रति आत्मीयता तथा ममत्व नहीं है । जहां वैयाकरणों की दुनियाम अर्धमाकाकी म्यूनता पुत्रोत्पत्ति सदृदा आनंद प्रदान करती है, वहां जैनेन्द्र के सूत्रोंमें अनेक शब्दोंका लाधव दन पूज्यपाव स्वामोकी लोकोत्तरता प्रकाशित होती है और कषिकी यह उक्ति सार्थक प्रतीत होती है "प्रमाणमकलंकस्य पुज्यपादस्य लक्षणम् । धमञ्जयकवेः काव्यं रत्नत्रयमाश्चिमम् ।।" पदि असाम्प्रदायिक तथा मार्मिक विचारक भावसे जन रचनाओंके साथ अन्य कृतियोंकी तुलना की जाय, तो ज्ञानीजनोंकों जैनबाङ्मयको यथार्थ पहनाका बोध हो। जैन रचनाओंका उचित परिशोलन, इनपर आलो वनाओं का निर्माण किया जाना एवं शुद्ध अनुवादोंका प्रकाशमैं आना अत्यन्त आवश्यक है। कालिवासका मेघदूत संसारमें विख्यात हो गया है, किन्तु जमनी ममस्यापूर्ति करते हुए भगवान् पार्श्वनाथका जोषन गुम्फित करने वाले भगवत् किनसेनके पाश्र्वाभ्युदयका कितने लोगोंने दर्शन किया है ? अब तक ऐसी महनीय रचना का हिन्दी अनुवाद अथवा मेघदूत और पाभ्युिदयका तुलनात्मक अध्ययन सा रचनाएं प्रकाशित नहीं हुई। सहृदय मामिक विद्वान् प्रो० पाठक जिम पाश्र्वान्युदया. मेघदूतकी अपेक्षा विशेष कवित्वपूर्ण रचना संसारके समक्ष उद्घोषित करने हैं, उसके प्रति जम समाजको उपेक्षा अथवा अन्य लोगों की अनासक्ति इस तथ्य को समझने में सहायता प्रदान करती है, कि महत्त्वपूर्ण, गंभीर तथा आनन्ददायी जन माहित्यका अप्रचार क्यों हुमा तथा लोक उसको गरिमामे क्यों अपरिचित रहा और अब भी अपरिचित है ? पावदियकी महत्ताको प्रकाशित करने वाला यह पद प्रत्येक उदार श्रीमान् एवं विद्वान्के लक्ष्यगोचर रहना चाहिये 1. "The first place among Indian poets is alloted to Kalidas by consent of all. Jinasena the author of great any claims to be considered a better genius than the author of Cloud Messenger नेघदूत"- Prof. K. B. Pathak.
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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