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________________ पराक्रमके प्रांगण में २४७ *धारवाड़, बेलगांव जिलों में शासन करने वाले महामण्ड लेबर नरेशों में महान योदा, मेरद, ५८वोराम, शांतिवर्म, कलारोन, कन्नकर, कार्तवीर्य, लक्ष्मी देव, मल्लिकार्जुन आदि जैनपाइसनके प्रति विशेष अनुरक्त थे । दसवींने तेरहवीं मदी तक कोल्हापुर, बेलगांवमें अपने पराक्रमके द्वारा शांतिका राज्य स्थापित करने वाले शीलहारनरेश जैन थे। महाराज विक्रमादित्यने घालुक्योंपर आकभग किया था । उनको कलिकाल विक्रमादित्य भी कहते थे । जिनधर्मके प्रति विशेष भक्तिधश उन्होंने कोल्हापुरके जिन्नमन्दिरके लिये बहुत भूमिदान की घो। सामन्त परसाती निम्ब महाराजन कोल्हापूरके विख्यात लक्ष्मी मन्दिरके समीप भगवान् नमिनाथका कलापूर्ण जिनमन्दिर मनवाया था, उसके वाह्य भागमे ७२ वडगासन दि० जनमूर्तियां विद्यमान हैं 1 किन्तु आज यह वैष्णष मन्दिर बना लिया गया है। भगवान् मेमिनायक स्थारर विष्णुको दो __जैन सेनापति बोप्पणको एक शिलालेख में बड़ा प्रलापी बताया है । पचित्री से बारहवीं शताब्दी पयंत ममूर, मुंबई प्रांत एवं दक्षिण भारत में चालुक्यवंशीय जैन नरेशोंका शामन था । इनमें सत्याश्रय द्वितीय पुलकेशी नामक जैन नरेशका नाम विशेष विख्यात है। अपने शिलालेखमें कालिदासका उल्लेख करने वाले जन कवि रविकीसिं द्वारा निर्मित ऐहोलके जिनमन्दिरोंको पुलकेशीने सहायता प्रदान को श्री। विमलादित्य, विजयादित्य, विनयादित्य, तैलप, जयसिंह तृतीय आदि जैन नरेशोंके शासन में जनमासन म्यूब विकसित रहा । कलचुरि नरेशों में म्हामण्डलेश्वर बिज्जल अपने पराक्रम और जिनेन्द्रभक्तिके लिये विख्यात थे । उनके पुत्र सोमेश्यरने भी जैनधर्मकी बढ़त सेवा की और लिंगायतोंके अत्याचारोंमे उसे बचाया । जैन नरेश बिज्जल महाराज के मन्त्री वसवराजने लिंगायत धर्मकी Somc HistJain kings and Heroes, 8. The temple has changed hands. Sheshshayiji has occupiec the place of Neminatha, All the basadis (Jain temples) in Kolhapur and near about have received grants at the hands of Nimbadev,--Kundnager Loccit. p. 11. 3. Ibid, y. The Chalukyas were without doubt the great supporters of ___ Jainism.-V. Smith His of India p. 444. 4. King Bijjal ruled peacefully with glory. He built many a Jain temple. His exploits as a warrior as well as supporter of the laith are well parrated in a Kanarese work called Bijjal Cha
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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