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________________ २४८ जैनशासन स्थापना की थी । उसने बिज्जल के प्राणहरण करने के लिए शीलहार नरेशले युद्ध करते समय छलकर विधदूषित बम खिलाए। किन्तु सुचतुर वैद्योंके प्रयत्न से बिजली मृत्यु न हुई । पश्चात् जब दसवका पता चलाया गया तब उसने कुएंमें गिरकर अपने प्राण गंवाया । दोर) के शासक होयसाल नरेश जंन थे। उन्हें सम्यक्त्व-चूड़ामणि, दक्षिण चक्रवर्ती आदि पदोंसे समलंकृत किया गया था। महाराज विनयादिरयके जिनभक्त पुत्र एरसंग महान योद्धा थे. उन्होंने श्रमणबेलगोलाके जिन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया था। बलाल द्वितीयने बारहवीं सदी में मैसूर में राज्य किया। इनकी महारानी शांतला देवीने श्रमणबेलगोला में सवतिगंधकारण वस (मन्दिर) बनवाकर वहाँ शान्तिनाथ भगवान्‌को मनोज्ञ मूर्ति त्रिराजमान कराई थी। मैसुरका प्रसिद्ध चामुण्डी पर्यंत मारवल जैनतीर्थ के नामसे बारहवीं शताब्दी में प्रख्यात था। श्रृंगेरी, जो शंकराचार्यका विशिष्ट स्थान है, जैनधर्मका महत्वपूर्ण स्थान था । महाराज नरसिंहके वोर सेनापति हल्लने श्रमण-बेलगोला में सुन्दर जैन मन्दिर बनवाये थे । होयसाल राज्य के अन्तिम नरेशद्वय जैन थे । ईसवी सन् १९६० के शिलालेख में राचमल्ल और मारसिंह द्वितीय प्रधान सेनापति चामुण्डरायका उल्लेख आया है । इनके विषय में कहा जाता है- " चामुण्डराय से बढ़कर वीर सैनिक, जैनधर्मभक्त सत्यनिष्ठ व्यक्तिका कर्नाटकने कभी भी दर्शन नहीं किया।" जैनशास्त्रों में चामुण्डरायको धामिकताकी प्रशंसा की गई है । अपने जीवन में चामुण्डरायको लगभग १८ बार युद्धस्थल में अपने पराक्रमको सफल प्रमाणित करने का अवसर प्राप्त हुआ। शौर्यमूर्ति चामुण्डरायका साहित्यिक जीवन भी विशेष महत्त्वपूर्ण है। संग्राम-भूमिमें इन्होंने श्रेष्ठ अहिंसापूर्ण प्रवृति करनेवाले महामुनियोंके धर्मावरणको समझानेवाला चारित्रसार नामक ग्रन्थ rite. He was succeeded by his son, Someshwara, who also was a supporter of Jainism and saved it from the onslaughts of the Lingayats. — Rice, Mysore & Coorg. p. 79. t. The well-known Chamundi hill near Mysore was once a Jain Tirtha-hMeaiaevat Jainismn p 259. २. "Another seat of Jainism was Sringeri" - Mediaeval Jainism 206. p. 3. "A braver soldier, a more devout Jain, and a more honest man than Chamundraya, Karnataka had never seen,"-Medieval Jainism. p. 102.
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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