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________________ आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल गंग माहि आई सी हूँ दो वरुना असी, बीचि बसी बानारसी नगरी बखानी है। कसिवार देस मध्य गांउ तात कासी नांउ, श्री सुपास पासको जनम भूमि मानी है। तहाँ दृह जिन सिवमारग प्रगट कीनौ, तब सेती सित्रपुरी जगत मैं जानी हैं। ऐसी विधि नाम थपे नगरी बरसीके, और भांति कहै सो, तो मिथ्यामत-वानी है।॥ २॥" महाकवि की 'बनारस' इस नामपर बड़ो आदर भावना प्रतीत होती है। उनकी मुरुधि आत्म-स्वरूपकी और वही इसे ये पारस प्रभुके जन्मसे पुनीत बनारस नगरीका प्रसाद मानते हैं। और वे अपने अन्तःकरण की निर्मल और अत्यन्त स्फीत भक्तिको इस अमर पद्य द्वारा व्यक्त करते हैं “जिन्हके वचन उर धारत जुगल नाग, भए धरनिंद पद्मावती पलकमें । जाकी नाम-हिमासों कुधातु कनक करे, पारस पाखान नामो भयो है खलकमें ।। जिन्हको जनमपुरी नामके प्रभाव हम, आपनो सरूपं लखो भानुसो भलक । सोई प्रभु पारस महारस के दाता अब, दीजे मोहि साता दग लीलाकी ललकमें ॥" -नाटक समयसार, ३ । जैन संस्कृति के विकास और संवर्द्धनको पुनीत पुण्य-भूमिके रूपमें बिहार प्रान्तके राजगृहीका अत्यन्त उच्च स्थान है । कारण, वासपूज्य भगवानको छोड़ शेष २३ तीर्थकरोंने कैवल्य लाभके उपरान्त अपनी धामिक देशनासे राजगिरिको पवित्र किया था । बीसवें तीर्थकर भगवान् मुनिसुनतके पुष्य जन्मसे यह पंच शैलपुर-राजगिरि पवित्र है-"पञ्च शैलपुरं पूतं मुनिसुव्रतमन्मनाः।" रि० १० ५२-३ ॥ ___भगवान महावीर के समवसरण-धर्मसभाके प्रधान पुरुष-रस्न सम्राट् श्रेणिकबिम्बसारकी निवासभूमि और राजधानी राजगृही रही है। राजगृहोके पूर्वमें चतुष्कोण ऋषिशल, दक्षिणमें वैभार और नैऋत्य दिशामें विपुलाचले पर्वत हैं; पश्चिम, वायव्य और उत्तर दिशामें किन्न नामका पर्वत है, ईशान दिशाम पाण्डु नामका पर्यत है ।' हरिवंशपुराणसे विदित होता है कि भगवान् महायोरने
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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