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________________ १८४ जैनशासन है । भगवान महावीरने ईसासे ५९९ वर्ष पूर्व कुण्डलपुरमें क्षत्रियशिरोमणि महाराज सिद्धार्थ के यहां माता त्रिशलाके उदरसे जन्म लिया था । व नायबंगके भूषण थे। रांसारके भोगों में उनका विवेकपूर्ण मन न लगा, अतः बालब्रह्मचारी रहकर चन्होंने ३० वर्षकी अवस्था निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुद्रा धारणकर. १२ वर्ष तपश्चर्या + : वर्षकी शाम कोलम किया और विश्व हितकर धर्मका उपदेश ३० वर्ष तक देकर ७२ वर्षको अवस्थामें परमनिर्वाण---मुक्ति प्राप्त की । प्रभुके चरित्रको विकृत करते हुए श्री शं० रा. राजवाडेने नादसीय सूस्तके भाष्य (पूर्वार्ध) में (पृ० १८६) भगवान् के नाथवंशको 'नटवंश' मान उन्हें नट पुत्र कहने की असत् चेष्टा की है और लिखा है, "गौतम व महावीर हे दोघ क्षत्रिय वात्य होते, कारण महावीरा 'नातपुत्त' म्हटला आहे व गौतमाचा जन्म लिनधी कुलांत झाला आहे । नातपुत्त-नटपुत्र, नट व लिच्छवी हो दोन्हीं कुले मजूने द्रात्य-क्षत्रिय म्हणून उल्लेखिली आहेत ।" खेद है कि अपने सम्प्रदाय-मोहवश मनुष्य सत्यका अपलाप करते हुए लज्जित नहीं होता। हरिवंशपुराणमें भगवान्के पिता महाराज सिद्धार्थ को प्रतापी भूप बताया है-"सिखार्योऽभवदाभो भूप: सिद्धार्थपोषः ।"-सर्ग २-१३ इसी बातका समर्थन अशग कवि कृत महावीरचरित्रके इस पद्ययुगलसे होता है"राजा तदात्ममतिविक्रमसाधितार्थः सिद्धार्थ इत्यभिहितः पुरमध्युबास ।। यो ज्ञातिवंशममलेन्दुकरावदातः श्रीमानसदा ध्वज इवायतिमानुदग्रः ॥१७२०-२१॥" जिस स्थलको प्रभुने अपने निर्वाण-कल्याणके द्वारा नरामर-चन्दनीय बना दिया, वह विहारशरीफ नामक स्टेशनसे ६-७ मोलपर है। वहाँसे भगवान्ने कार्तिक कृष्णा अमावस्याके प्रभातमें कर्मोंका नाश कर मोक्ष प्राप्त किया था। पावापुरीको वातावरण बहुत शान्त, पवित्र और उज्ज्वल विचारोंका उद्बोधक है। यह स्मरण रखना चाहिए कि विचारशील व्यक्तिके लिए हो ये सन साधन कल्याणकारी होते हैं । किन्तु विवेकहीन व्यक्तियोंकी मोहनिद्रा प्रयत्न करनेपर भी दूर नहीं होती। प्राकृत निर्वाणकाण्ड में पूर्वोक्त चार तीर्थकरोंको आत्मस्वातंत्र्य-उपलब्धिकी भूमियोंका इन सुन्दर शब्दों में संस्मरण तपा वन्दन किया गया है "अदावर्याम्म उसहो चंपाए वासुपूज्ज जिणणाहो । उज्जते मिजिणो पावाए णिव्वुदो महावीरो ॥१॥"
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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