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________________ आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल १८५ दृषभनाथने अष्ट्रापद (कैलास) से, वासुपूज्य जिनेन्द्रने चम्पापुरीसे, नेमिनाथने ऊर्जयन्त गिरिसे और महाबोर भगवान्ने पावापुरीसे निर्वाण प्राप्त किया। भगवान् अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, गुमतिनाथ, पधप्रभु, सुपायनाय, चन्द्रप्रभु, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाघ, मुनिसुव्रतनाथ, नेमिनाथ और पाश्र्वनाथने बिहार प्रान्तमें विद्यमान मम्मेदशिखरसे जिसे पारसनाथ-हिल कहते हैं-भान प्राप्त किया है । इसीलिए नि भन्लिमें भाचार्य कहते हैं "बीसं तु जिणरिदा अमरासुरवंदिदा घुकिलेसा । सम्मेदे गिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसि ॥" देव और मनुष्यादिके द्वारा तन्दनीय कर्मक्लेश रहित, बीस जिनेन्द्रोंने सम्मेद पर्वतके शिखरसे निर्वाण प्राप्त किया, उस सबको नमस्कार हो । ___ यह पर्वत शिखरजी के नामसे जैन समाज में प्रख्यात है। प्रीयी कौंसिल को लापोल नं० १२१, सन् १९३३ पर दिए गए फैसलेसे पर्वतके विषयमें यह बात विदित होती है-"पाश्वनाथ पर्वतपर जो जिनमन्दिर हैं, वे निस्सन्दह बहुत प्राचीन है। किन्तु उनके इतिहासका अथवा उस समयका, जब कि सम्पूर्ण पर्वतके विषयमें पवित्रता सम्बन्धी पवित्र विचार सर्वप्रथम मान्ने गये, बहुत कम ज्ञान है।........पर्वत स्वयं २५ वर्ग-मील विस्तार में है और उसकी सबसे ऊंची चोटी ४५ सो फुटपर है । लेफ्टिनेंट बीडल, जो उस स्थानको सन् १८४६ ई० में गए थे, की रिपोर्टके अनुसार वह शाडो तथा घने जंगलसे हवा हुआ था और जंगली जानवरोंसे भरा हुआ था। उसमें मनुष्य नहीं रहते थे । हाँ, कुछ सन्थालोंकोजंगली लोगोंकी झोपड़ियां थीं, जो पर्वतके नीचेके भागपर थीं।" आगे चलकर योडल साहबने १८४६ ई० में यह भी लिखा है कि-"पर्वतपर प्रतिवर्ष जनवरी मासमें एक पक्ष पर्यन्त एक धार्मिक मेला भरा करता था। पूजकोंको आवश्य: कताओंको पूर्ति के लिए दुकानदार अनाज या दूसरी चीजें लेकर पर्वतपर बढ़ते थे ।" महाकवि बनारसीदासजीके अर्थकथानकमें संवत् १६६१ में शिखरजीको यात्राका वर्णन है, जिससे तत्कालीन सामाजिक व्यबहारका भी पर्याप्त बोध होता है "साहिब साह सलीम को, हीरानंद मुकीम । ओसवाल कुल जौहरी, बनिक वित्तको सोम ॥२२४।। तिन प्रयागपुर नगर सो, कीनी उद्यम सार । संघ चलायो सिखरकी, उतरची गंगा पार ॥ २२५ ॥
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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